मन रे प्रभ की सरनि बिचारो- शब्द-सोरठि महला ९-ੴ सतिगुर प्रसादि-गुरू तेग बहादुर साहिब-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Guru Guru Teg Bahadur Sahib
मन रे प्रभ की सरनि बिचारो- शब्द-सोरठि महला ९-ੴ सतिगुर प्रसादि-गुरू तेग बहादुर साहिब-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Guru Guru Teg Bahadur Sahib मन रे प्रभ की सरनि बिचारो ॥ जिह सिमरत गनका सी उधरी ता को जसु उर धारो ॥1॥रहाउ॥ अटल भइओ ध्रअ जा कै सिमरनि अरु निरभै पदु पाइआ ॥ …