मन्दिर और महन्त-भारत-भारती (वर्तमान खण्ड) -मैथिलीशरण गुप्त -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Maithilisharan Gupt Bharat-Bharti( Vartman Khand) 

मन्दिर और महन्त-भारत-भारती (वर्तमान खण्ड) -मैथिलीशरण गुप्त -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Maithilisharan Gupt Bharat-Bharti( Vartman Khand) मन्दिर और महन्त कैसी भयङ्कर अब हमारी तीर्थ-यात्रा हो रही, उन मन्दिरों में ही विकृति की पूर्ण मात्रा हो रही! अड्डे-अखाड़े बन रहे हैं ईश के आवास भी, आती नहीं है लोक-लजा अब हमारे पास भी ।। १९४ …

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