मनहु जि अंधे कूप कहिआ बिरदु न जाणन्ही-सलोक-गुरु नानक देव जी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Guru Nanak Dev Ji
मनहु जि अंधे कूप कहिआ बिरदु न जाणन्ही-सलोक-गुरु नानक देव जी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Guru Nanak Dev Ji मनहु जि अंधे कूप कहिआ बिरदु न जाणन्ही ॥ मनि अंधै ऊंधै कवलि दिसन्हि खरे करूप ॥ इकि कहि जाणहि कहिआ बुझहि ते नर सुघड़ सरूप ॥ इकना नाद न बेद न गीअ …