गुन के गाहक सहस नर, बिन गुन लहै न कोय- (लोक-नीति)-कुण्डलियाँ -गिरिधर कविराय-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Giridhar Kavirai
गुन के गाहक सहस नर, बिन गुन लहै न कोय- (लोक-नीति)-कुण्डलियाँ -गिरिधर कविराय-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Giridhar Kavirai गुन के गाहक सहस नर, बिन गुन लहै न कोय । जैसे कागा-कोकिला, शब्द सुनै सब कोय । शब्द सुनै सब कोय, कोकिला सबे सुहावन । दोऊ को इक रंग, काग सब भये …