गुंजन -सुमित्रानंदन पंत -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Sumitranandan Pant Part 1

गुंजन -सुमित्रानंदन पंत -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Sumitranandan Pant Part 1 आँसू की आँखों से मिल आँसू की आँखों से मिल भर ही आते हैं लोचन, हँसमुख ही से जीवन का पर हो सकता अभिवादन। अपने मधु में लिपटा पर कर सकता मधुप न गुंजन, करुणा से भारी अंतर खो देता जीवन-कंपन विश्वास चाहता …

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गुंजन -सुमित्रानंदन पंत -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Sumitranandan Pant Part 2

गुंजन -सुमित्रानंदन पंत -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Sumitranandan Pant Part 2 वन-वन, उपवन वन-वन, उपवन- छाया उन्मन-उन्मन गुंजन, नव-वय के अलियों का गुंजन! रुपहले, सुनहले आम्र-बौर, नीले, पीले औ ताम्र भौंर, रे गंध-अंध हो ठौर-ठौर उड़ पाँति-पाँति में चिर-उन्मन करते मधु के वन में गुंजन! वन के विटपों की डाल-डाल कोमल कलियों से लाल-लाल, …

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गुंजन -सुमित्रानंदन पंत -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Sumitranandan Pant Part 3

गुंजन -सुमित्रानंदन पंत -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Sumitranandan Pant Part 3 सुन्दर मृदु-मृदु रज का तन सुन्दर मृदु-मृदु रज का तन, चिर सुन्दर सुख-दुख का मन, सुन्दर शैशव-यौवन रे सुन्दर-सुन्दर जग-जीवन! सुन्दर वाणी का विभ्रम, सुन्दर कर्मों का उपक्रम, चिर सुन्दर जन्म-मरण रे सुन्दर-सुन्दर जग-जीवन! सुन्दर प्रशस्त दिशि-अंचल, सुन्दर चिर-लघु, चिर-नव पल, सुन्दर पुराण-नूतन …

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गुंजन -सुमित्रानंदन पंत -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Sumitranandan Pant Part 4

गुंजन -सुमित्रानंदन पंत -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Sumitranandan Pant Part 4 अलि! इन भोली बातों को अलि! इन भोली बातों को अब कैसे भला छिपाऊँ! इस आँख-मिचौनी से मैं कह? कब तक जी बहलाऊँ? मेरे कोमल-भावों को तारे क्या आज गिनेंगे! कह? इन्हें ओस-बूँदों-सा फूलों में फैला आऊँ? अपने ही सुख में खिल-खिल उठते …

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गुंजन -सुमित्रानंदन पंत -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Sumitranandan Pant Part 6

गुंजन -सुमित्रानंदन पंत -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Sumitranandan Pant Part 6 चाँदनी नीले नभ के शतदल पर वह बैठी शारद-हासिनि, मृदु-करतल पर शशि-मुख धर, नीरव, अनिमिष, एकाकिनि! वह स्वप्न-जड़ित नत-चितवन छू लेती अग-जग का मन, श्यामल, कोमल, चल-चितवन जो लहराती जग-जीवन! वह फूली बेला की बन जिसमें न नाल, दल, कुड्मल, केवल विकास चिर-निर्मल …

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गुंजन -सुमित्रानंदन पंत -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Sumitranandan Pant Part 5

गुंजन -सुमित्रानंदन पंत -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Sumitranandan Pant Part 5 जाने किस छल-पीड़ा से जाने किस छल-पीड़ा से व्याकुल-व्याकुल प्रतिपल मन, ज्यों बरस-बरस पड़ने को हों उमड़-उमड़ उठते घन! अधरों पर मधुर अधर धर, कहता मृदु स्वर में जीवन- बस एक मधुर इच्छा पर अर्पित त्रिभुवन-यौवन-धन! पुलकों से लद जाता तन, मुँद जाते …

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