गीतिका (५)-शंकर कंगाल नहीं-शंकर लाल द्विवेदी -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Shankar Lal Dwivedi
गीतिका (५)-शंकर कंगाल नहीं-शंकर लाल द्विवेदी -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Shankar Lal Dwivedi स्वर कोकिला का, केवल उपमान बन गया है। जब काँव-काँव रव ही, कलगान बन गया है।। किस मंच पर पधारूँ, मैं गीत क्या सुनाऊँ? जब कण्ठ भावना का प्रतिमान बन गया है।। कलियुग तुम्हारे घर में क्या जन्म लें युधिष्ठिर? …