गिरिधर कविराय-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Giridhar Kavirai

गिरिधर कविराय-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Giridhar Kavirai हुक्का बांध्यौ फैंट में नै गहि लीनी हाथ- (लोक-नीति)-कुण्डलियाँ -गिरिधर कविराय-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Giridhar Kavirai कमरी थोरे दाम की, बहुतै आवै काम- (लोक-नीति)-कुण्डलियाँ -गिरिधर कविराय-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Giridhar Kavirai साईं अपने भ्रात को, कबहुं …

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हुक्का बांध्यौ फैंट में नै गहि लीनी हाथ- (लोक-नीति)-कुण्डलियाँ -गिरिधर कविराय-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Giridhar Kavirai

हुक्का बांध्यौ फैंट में नै गहि लीनी हाथ- (लोक-नीति)-कुण्डलियाँ -गिरिधर कविराय-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Giridhar Kavirai हुक्का बांध्यौ फैंट में नै गहि लीनी हाथ चले राह में जात है बंधी तमाकू साथ बंधी तमाकू साथ गैल को धंधा भूल्यौ गई सब चिंता दूर आग देखत मन फूल्यौ कह गिरधर कविराय जु …

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कमरी थोरे दाम की, बहुतै आवै काम- (लोक-नीति)-कुण्डलियाँ -गिरिधर कविराय-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Giridhar Kavirai

कमरी थोरे दाम की, बहुतै आवै काम- (लोक-नीति)-कुण्डलियाँ -गिरिधर कविराय-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Giridhar Kavirai कमरी थोरे दाम की, बहुतै आवै काम। खासा मलमल वाफ्ता, उनकर राखै मान॥ उनकर राखै मान, बँद जहँ आड़े आवै। बकुचा बाँधे मोट, राति को झारि बिछावै॥ कह ‘गिरिधर कविराय’, मिलत है थोरे दमरी। सब दिन …

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साईं अपने भ्रात को, कबहुं न दीजै त्रास- (लोक-नीति)-कुण्डलियाँ -गिरिधर कविराय-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Giridhar Kavirai

साईं अपने भ्रात को, कबहुं न दीजै त्रास- (लोक-नीति)-कुण्डलियाँ -गिरिधर कविराय-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Giridhar Kavirai साईं अपने भ्रात को, कबहुं न दीजै त्रास पलक दूर नहिं कीजिये, सदा राखिये पास सदा राखिये पास, त्रास कबहूं नहिं दीजै त्रास दियो लंकेश, ताहि की गति सुन लीजै कह गिरिधर कविराय, राम सों …

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 साईं सुआ प्रवीन गति वाणी वदन विचित्त- (लोक-नीति)-कुण्डलियाँ -गिरिधर कविराय-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Giridhar Kavirai

साईं सुआ प्रवीन गति वाणी वदन विचित्त- (लोक-नीति)-कुण्डलियाँ -गिरिधर कविराय-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Giridhar Kavirai साईं सुआ प्रवीन गति वाणी वदन विचित्त रूपवंत गुण आगरो राम नाम सों चित्त राम नाम सों चित्त और देवन अनुरागयो जहां जहां तुव गयो तहां तहां नीको लागयो कह गिरिधर कविराय सुआ चूकयो चतुराई वृथा …

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साईं तहां न जाइये जहां न आपु सुहाय- (लोक-नीति)-कुण्डलियाँ -गिरिधर कविराय-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Giridhar Kavirai

साईं तहां न जाइये जहां न आपु सुहाय- (लोक-नीति)-कुण्डलियाँ -गिरिधर कविराय-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Giridhar Kavirai साईं तहां न जाइये जहां न आपु सुहाय वर्ण विषै जाने नहीं, गदहा दाखै खाय गदहा दाखै खाय गऊ पर दृशटि लगावै सभा बैठि मुसकयाय यही सब नृप को भावै कह गिरिधर कविराय सुनो रे …

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साईं घोड़े आछतहि गदहन आयो राज- (लोक-नीति)-कुण्डलियाँ -गिरिधर कविराय-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Giridhar Kavirai

साईं घोड़े आछतहि गदहन आयो राज- (लोक-नीति)-कुण्डलियाँ -गिरिधर कविराय-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Giridhar Kavirai साईं घोड़े आछतहि गदहन आयो राज| कौआ लीजै हाथ में दूरि कीजिये बाज|| दुरी कीजिये बाज राज पुनि ऐसो आयो | सिंह कीजिये कैद स्यार गजराज चढायो|| कह गिरिधर कविराय जहाँ यह बूझि बधाई| तहां न कीजै …

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साईं बेटा बाप के बिगरे भयो अकाज- (लोक-नीति)-कुण्डलियाँ -गिरिधर कविराय-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Giridhar Kavirai

साईं बेटा बाप के बिगरे भयो अकाज- (लोक-नीति)-कुण्डलियाँ -गिरिधर कविराय-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Giridhar Kavirai साईं बेटा बाप के बिगरे भयो अकाज हरनाकुस अरु कंस को गयो दुहुन को राज गयो दुहुन को राज बाप बेटा के बिगरे दुसमन दावागीर भए महिमंडल सिगरे कह गिरिधर कविराय जुगन याही चलि आई पिता …

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 साईं सब संसार में, मतलब को व्यवहार- (लोक-नीति)-कुण्डलियाँ -गिरिधर कविराय-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Giridhar Kavirai

साईं सब संसार में, मतलब को व्यवहार- (लोक-नीति)-कुण्डलियाँ -गिरिधर कविराय-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Giridhar Kavirai साईं सब संसार में, मतलब को व्यवहार। जब लग पैसा गांठ में, तब लग ताको यार॥ तब लग ताको यार, यार संगही संग डोलैं। पैसा रहा न पास, यार मुख से नहिं बोलैं॥ कह ‘गिरिधर कविराय …

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 साईं अपने चित्त की, भूलि न कहिये कोइ- (लोक-नीति)-कुण्डलियाँ -गिरिधर कविराय-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Giridhar Kavirai

साईं अपने चित्त की, भूलि न कहिये कोइ- (लोक-नीति)-कुण्डलियाँ -गिरिधर कविराय-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Giridhar Kavirai साईं अपने चित्त की, भूलि न कहिये कोइ। तब लगि मन में राखिये, जब लगि कारज होइ॥ जब लगि कारज होइ, भूलि कबं नहिं कहिये। दुरजन हंसै न कोय, आप सियरे ह्वै रहिये। कह ‘गिरिधर …

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