गिरिजा कुमार माथुर-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Girija Kumar Mathur 

गिरिजा कुमार माथुर-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Girija Kumar Mathur छाया मत छूना-तार सप्तक -गिरिजा कुमार माथुर-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Girija Kumar Mathur   दो पाटों की दुनिया-तार सप्तक -गिरिजा कुमार माथुर-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Girija Kumar Mathur  नया कवि-तार सप्तक -गिरिजा कुमार माथुर-Hindi Poetry-हिंदी …

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छाया मत छूना-तार सप्तक -गिरिजा कुमार माथुर-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Girija Kumar Mathur 

छाया मत छूना-तार सप्तक -गिरिजा कुमार माथुर-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Girija Kumar Mathur छाया मत छूना मन होता है दुख दूना मन जीवन में हैं सुरंग सुधियाँ सुहावनी छवियों की चित्र-गंध फैली मनभावनी; तन-सुगंध शेष रही, बीत गई यामिनी, कुंतल के फूलों की याद बनी चाँदनी। भूली-सी एक छुअन बनता हर …

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 दो पाटों की दुनिया-तार सप्तक -गिरिजा कुमार माथुर-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Girija Kumar Mathur 

दो पाटों की दुनिया-तार सप्तक -गिरिजा कुमार माथुर-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Girija Kumar Mathur दो पाटों की दुनिया चारों तरफ शोर है, चारों तरफ भरा-पूरा है, चारों तरफ मुर्दनी है, भीड और कूडा है। हर सुविधा एक ठप्पेदार अजनबी उगाती है, हर व्यस्तता और अधिक अकेला कर जाती है। हम क्या …

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नया कवि-तार सप्तक -गिरिजा कुमार माथुर-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Girija Kumar Mathur 

नया कवि-तार सप्तक -गिरिजा कुमार माथुर-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Girija Kumar Mathur जो अंधेरी रात में भभके अचानक चमक से चकचौंध भर दे मैं निरंतर पास आता अग्निध्वज हूँ कड़कड़ाएँ रीढ़ बूढ़ी रूढ़ियों की झुर्रियाँ काँपें घुनी अनुभूतियों की उसी नई आवाज़ की उठती गरज हूँ। जब उलझ जाएँ मनस गाँठें …

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बुद्ध-तार सप्तक -गिरिजा कुमार माथुर-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Girija Kumar Mathur 

बुद्ध-तार सप्तक -गिरिजा कुमार माथुर-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Girija Kumar Mathur आज लौटती जाती है पदचाप युगों की, सदियों पहले का शिव-सुन्दर मूर्तिमान हो चलता जाता है बोझीले इतिहासों पर श्वेत हिमालय की लकीर-सा । प्रतिमाओं-से धुँधले बीते वर्ष आ रहे, जिन में डूबी दिखती ध्यान-मग्न तसवीर, बोधि-तरु के नीचे की …

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अधूरा गीत-तार सप्तक -गिरिजा कुमार माथुर-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Girija Kumar Mathur 

अधूरा गीत-तार सप्तक -गिरिजा कुमार माथुर-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Girija Kumar Mathur मैं शुरु हुआ मिटने की सीमा-रेखा पर, रोने में था आरम्भ किन्तु गीतों में मेरा अन्त हुआ । मैं एक पूर्णता के पथ का कच्चा निशान, अपनी अपूर्णता में पूर्ण, मैं एक अधूरी कथा कला का मरण-गीत, रोने आया …

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विजय दशमी-तार सप्तक -गिरिजा कुमार माथुर-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Girija Kumar Mathur 

विजय दशमी-तार सप्तक -गिरिजा कुमार माथुर-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Girija Kumar Mathur आसमान की आदिम छायाओं के नीचे, दक्षिण का यह महासिन्धु अब भी टकराता, सेतुबंध की श्यामल, बहती चट्टानों से। आँखों में, यह अन्तरीप के मन्दिर की चोटी उठती है, जिस पर रोज़ साँझ छा जाते, युग-युग रंजित, लाल, सुनहले, …

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एसोसिएशन-तार सप्तक -गिरिजा कुमार माथुर-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Girija Kumar Mathur 

एसोसिएशन-तार सप्तक -गिरिजा कुमार माथुर-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Girija Kumar Mathur कुछ सुनसान दिनों को, और चाँदनी से ठण्डी-ठण्डी रातों को, पत्रों की दुनिया से भी हम दूर हुए थे; आज तुम्हारा सूना-सा सन्देश मिला है, प्यार दूर का । मान-गर्व के दो दिन अभी बिताये मैंने, गीतों के उस मेले …

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भीगा दिन-तार सप्तक -गिरिजा कुमार माथुर-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Girija Kumar Mathur 

भीगा दिन-तार सप्तक -गिरिजा कुमार माथुर-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Girija Kumar Mathur भीगा दिन पश्चिमी तटों में उतर चुका है, बादल-ढकी रात आती है धूल-भरी दीपक की लौ पर मंद पग धर। गीली राहें धीरे-धीरे सूनी होतीं जिन पर बोझल पहियों के लंबे निशान है माथे पर की सोच-भरी रेखाओं जैसे। …

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क्वाँर की दुपहरी-तार सप्तक -गिरिजा कुमार माथुर-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Girija Kumar Mathur 

क्वाँर की दुपहरी-तार सप्तक -गिरिजा कुमार माथुर-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Girija Kumar Mathur क्वाँर की सूनी दुपहरी, श्वेत गरमीले, रुएं-से बादलों में, तेज़ सूरज निकलता, फिर डूब जाता । घरों में सूनसान आलस ऊँघता है, थकी राहें ठहर कर विश्राम करतीं; दूर सूनी गली के उस छोर पर से नीम-नीचे खेलते …

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