ये कौल तेरा याद है साक़ी-ए-दौराँ-गुल-ए-नग़मा-फ़िराक़ गोरखपुरी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Firaq Gorakhpuri
ये कौल तेरा याद है साक़ी-ए-दौराँ-गुल-ए-नग़मा-फ़िराक़ गोरखपुरी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Firaq Gorakhpuri ये कौल तेरा याद है साक़ी-ए-दौराँ अंगूर के इक बीच में सौ मयकदे पिनहाँ। अँगड़ाइयाँ सुब्हों की सरे-आरिज़े-ताबाँ। वो करवटे शामों की, सरे-काकुले-पेचाँ। सद-मेह्र दरख़्शिन्दा, चराग़े-तहे-दामाँ। सरता-ब-क़दम तू शफ़क़िस्ताँ-शफ़क़िस्ताँ। पैकर ये लहकता है कि गुलज़ारे-इरम है हर अज़्व चहकता …