कविता-मोहनजीत कुकरेजा -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Mohanjeet Kukreja Poetry

कविता-मोहनजीत कुकरेजा -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Mohanjeet Kukreja Poetry अंजान साए पीछे-कविता-मोहनजीत कुकरेजा -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Mohanjeet Kukreja Poetry बूढ़ी सांसें चल रही थीं-कविता-मोहनजीत कुकरेजा -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Mohanjeet Kukreja Poetry जिनके ज़ुल्मों को हम सह गए-कविता-मोहनजीत कुकरेजा -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Mohanjeet Kukreja Poetry साथ में जी लूं-कविता-मोहनजीत …

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अंजान साए पीछे-कविता-मोहनजीत कुकरेजा -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Mohanjeet Kukreja Poetry

अंजान साए पीछे-कविता-मोहनजीत कुकरेजा -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Mohanjeet Kukreja Poetry   अंजान साए पीछे मैं चलता चला गया। जीवन मिरा तभी से बदलता चला गया। मुझसे कहा किसी ने तपो निखरो सोने सा मेहनत की तब से आग में जलता चला गया। किसने कहा के अपने पन में कोई दम नहीं अपनों के …

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बूढ़ी सांसें चल रही थीं-कविता-मोहनजीत कुकरेजा -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Mohanjeet Kukreja Poetry

बूढ़ी सांसें चल रही थीं-कविता-मोहनजीत कुकरेजा -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Mohanjeet Kukreja Poetry   बूढ़ी सांसें चल रही थीं सहारे लाठी के मैं हथप्रभ था झुका हुआ था शर्म से और सोचता था काश! मैं कुछ कर पता… मगर अफ़सोस! इंसानियत की हुई हार… सिवाय सोचने के कुछ कर न पाया मैं! उस कंपकंपाते …

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जिनके ज़ुल्मों को हम सह गए-कविता-मोहनजीत कुकरेजा -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Mohanjeet Kukreja Poetry

जिनके ज़ुल्मों को हम सह गए-कविता-मोहनजीत कुकरेजा -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Mohanjeet Kukreja Poetry   जिनके ज़ुल्मों को हम सह गए वो हमें बेवफ़ा कह गए। ख़्वाब वो मिलके देखे हुए आंसुओं में सभी बह गए। तुम न आये नज़र दूर तक राह हम देखते रह गए। रो पड़ा गांव में जा के मैं …

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साथ में जी लूं-कविता-मोहनजीत कुकरेजा -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Mohanjeet Kukreja Poetry

साथ में जी लूं-कविता-मोहनजीत कुकरेजा -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Mohanjeet Kukreja Poetry   साथ में जी लूं या जीते जी मर जाऊं अपना सब कुछ तुझको अर्पण कर जाऊं तेरी ख़ातिर छोड़ दिया घर बार अपना बोल मैं क्या मुंह लेकर अपने घर जाऊं दुनिया की सारी दौलत इक ओर करूँ तेरा साथ अगर …

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जब हमें तुम याद आये-कविता-मोहनजीत कुकरेजा -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Mohanjeet Kukreja Poetry

जब हमें तुम याद आये-कविता-मोहनजीत कुकरेजा -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Mohanjeet Kukreja Poetry   जब हमें तुम याद आये रात भर आंसुओं ने ग़म बहाये रात भर। ख़्वाब कितने ही सजाये रात भर जिनको चाहा वो न आये रात भर। एक सूरज ढल गया जब शाम को चांद तारे मुस्कुराये रात भर। कल मुझे …

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परम पुनीता इस धरा पर देवसरिता-कविता-मोहनजीत कुकरेजा -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Mohanjeet Kukreja Poetry

परम पुनीता इस धरा पर देवसरिता-कविता-मोहनजीत कुकरेजा -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Mohanjeet Kukreja Poetry   परम पुनीता इस धरा पर देवसरिता बह रही है छलछलाती तट पे जाती देववाणी कह रही है। युगों- युगों से देव गंधर्व, यक्ष, मानव वास करते सत्य की वाणी को पाने का सभी प्रयास करते। आज भी गिरिराज की …

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कितनी ही मेहनत करके-कविता-मोहनजीत कुकरेजा -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Mohanjeet Kukreja Poetry

कितनी ही मेहनत करके-कविता-मोहनजीत कुकरेजा -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Mohanjeet Kukreja Poetry   कितनी ही मेहनत करके दो जून रोटियां पाते हैं भाग्य विधाता लोकतंत्र के सड़कों पर रात बिताते हैं। अफ़सोस नहीं हो रहा उन्हें जो कद्दावर बन बैठे इन्हीं के पोषित देश भूमि के जो सत्ताधर बन बैठे इन मक्कारों के खेल …

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जिनको तू अपना कहता है-कविता-मोहनजीत कुकरेजा -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Mohanjeet Kukreja Poetry

जिनको तू अपना कहता है-कविता-मोहनजीत कुकरेजा -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Mohanjeet Kukreja Poetry   जिनको तू अपना कहता है जिनको तू सपना कहता है छोड़ न जाना साथ कभी भी कुछ भी हो हालात कभी भी। जीवन में एक क्षण आयेगा तेरा साहस घिर जायेगा पर तू आगे बढ़ते जाना पर्वत पर्वत चढ़ते जाना …

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सुनो संगी चमन वीरों-कविता-मोहनजीत कुकरेजा -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Mohanjeet Kukreja Poetry

सुनो संगी चमन वीरों-कविता-मोहनजीत कुकरेजा -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Mohanjeet Kukreja Poetry   सुनो संगी चमन वीरों तुम्हारा सत्य हो सपना हौसला दिल में उम्मीदें निगाहें लक्ष्य पर रखना। जो है संकल्प करता तू अटल स्वलक्ष्य पाने को रगो में जोश इतना भर हो सक्षम नभ झुकने को लिए दृढ़ प्रण बढ़ते चल, स्वाद …

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