मैथिलीशरण गुप्त -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Maithilisharan Gupt Dwapar

मैथिलीशरण गुप्त -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Maithilisharan Gupt Dwapar द्वारकाधीश- सुदामा-द्वापर -मैथिलीशरण गुप्त -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Maithilisharan Gupt Dwapar गोपी-द्वापर -मैथिलीशरण गुप्त -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Maithilisharan Gupt Dwapar  उद्धव (गोपियों के प्रति)-द्वापर -मैथिलीशरण गुप्त -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Maithilisharan Gupt Dwapar उद्धव  (यशोदा के प्रति)-द्वापर -मैथिलीशरण गुप्त -Hindi Poetry-कविता-Hindi …

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द्वारकाधीश- सुदामा-द्वापर -मैथिलीशरण गुप्त -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Maithilisharan Gupt Dwapar

द्वारकाधीश- सुदामा-द्वापर -मैथिलीशरण गुप्त -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Maithilisharan Gupt Dwapar (द्वारकाधीश) सुदामा अरी राम कह, वन-सा यह घर छोड़ कहां मैं जाऊँ? उस आनन्दकन्द को कैसे तेरी व्यथा सुनाऊँ? जगती में रह कर जगती की बाधा से डरती है? करनी तो अपनी है धरनी, असन्तोष करती है? आने-जाने वाली बातें आती हैं-जाती हैं, …

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गोपी-द्वापर -मैथिलीशरण गुप्त -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Maithilisharan Gupt Dwapar 

गोपी-द्वापर -मैथिलीशरण गुप्त -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Maithilisharan Gupt Dwapar   गोपी राधा का प्रणाम मुझसे लो, श्याम-सखे, तुम ज्ञानी; ज्ञान भूल, बन बैठा उसका रोम-रोम ध्रुव-ध्यानी । न तो आज कुछ कहती है वह और न कुछ सुनती है; अन्तर्यामी ही यह जानें, क्या गुनती-बुनती है। कर सकती तो करती तुमसे प्रश्न आप …

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उद्धव (गोपियों के प्रति)-द्वापर -मैथिलीशरण गुप्त -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Maithilisharan Gupt Dwapar

उद्धव (गोपियों के प्रति)-द्वापर -मैथिलीशरण गुप्त -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Maithilisharan Gupt Dwapar  उद्धव (गोपियों के प्रति) अहा! गोपियों की यह गोष्ठी, वर्षा की ऊषा-सी; व्यस्त-ससम्भ्रम उठ दौड़े की स्खलित ललित भूषा-सी। श्रम कर जो क्रम खोज रही हो, उस भ्रमशीला स्मृति-सी; एक अतर्कित स्वप्न देखकर चकित चौंकती धृति-सी। हो होकर भी हुई न …

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उद्धव  (यशोदा के प्रति)-द्वापर -मैथिलीशरण गुप्त -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Maithilisharan Gupt Dwapar 

उद्धव  (यशोदा के प्रति)-द्वापर -मैथिलीशरण गुप्त -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Maithilisharan Gupt Dwapar   उद्धव (यशोदा के प्रति) अम्ब यशोदे, रोती है तू? गर्व क्यों नहीं करती? भरी भरी फिरती है तेरे अंचल-धन से धरती । अब शिशु नहीं, सयाना है वह, पर तू यह जानें क्या? आया है वह तेरी माखन- मिसरी ही …

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कंस-द्वापर -मैथिलीशरण गुप्त -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Maithilisharan Gupt Dwapar 

कंस-द्वापर -मैथिलीशरण गुप्त -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Maithilisharan Gupt Dwapar   कंस नियति कौन है? एक नियन्ता मैं ही अपना आप; कर्म-भीरुयों का आकुंचन, एक मात्र यह पाप । धर्म एक, बस अग्नि-धर्म है, जो आवे सो छार! जल भी उड़े वाष्प बन बन, मल भी हो अंगार! फूंक-फूंक कर पैर धरोगे धरती पर …

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 बलराम-द्वापर -मैथिलीशरण गुप्त -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Maithilisharan Gupt Dwapar 

बलराम-द्वापर -मैथिलीशरण गुप्त -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Maithilisharan Gupt Dwapar    बलराम उलटा लेट कुहनियों के बल, धरे वेणु पर ठोड़ी, कनू कुंज में आज अकेला, चिन्ता में है थोड़ी । सुबल, विशाल, अंशु ओजस्वी, वृषभ, वरूथप, आओ; यमुना-तट, वट-तले बैठकर कुछ मेरी सुन जायो । खेल-कूद में ही न अरे, हम सब अवसर …

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यशोदा-द्वापर -मैथिलीशरण गुप्त -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Maithilisharan Gupt Dwapar 

यशोदा-द्वापर -मैथिलीशरण गुप्त -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Maithilisharan Gupt Dwapar  यशोदा मेरे भीतर तू बैठा है, बाहर तेरी माया; तेरा दिया राम, सब पावें, जैसा मैंने पाया। मेरे पति कितने उदार हैं, गद्गद हूँ यह कहते— रानी-सी रखते हैं मुझको, स्वयं सचिव-से रहते। इच्छा कर, झिड़कियाँ परस्पर हम दोनों हैं सहते, थपकी-से हैं अहा …

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राधा-द्वापर -मैथिलीशरण गुप्त -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Maithilisharan Gupt Dwapar

राधा-द्वापर -मैथिलीशरण गुप्त -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Maithilisharan Gupt Dwapar राधा शरण एक तेरे मैं आयी, धरे रहें सब धर्म हरे ! बजा तनिक तू अपनी मुरली, नाचें मेरे मर्म हरे ! नहीं चाहती मैं विनिमय में उन वचनों का वर्म हरे ! तुझको—एक तुझी को—अर्पित राधा के सब कर्म हरे ! यह वृन्दावन, …

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श्रीकृष्ण-द्वापर -मैथिलीशरण गुप्त -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Maithilisharan Gupt Dwapar

श्रीकृष्ण-द्वापर -मैथिलीशरण गुप्त -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Maithilisharan Gupt Dwapar श्रीकृष्ण राम भजन कर पाँचजन्य ! तू, वेणु बजा लूँ आज अरे, जो सुनना चाहे सो सुन ले, स्वर ये मेरे भाव भरे— कोई हो, सब धर्म छोड़ तू आ, बस मेरा शरण धरे, डर मत, कौन पाप वह, जिससे मेरे हाथों तू न …

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