दुष्यंत कुमार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Dushyant Kumar

दुष्यंत कुमार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Dushyant Kumar तुझे कैसे भूल जाऊँ-जलते हुए वन का वसन्त-खण्ड तीन-दुष्यंत कुमार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Dushyant Kumar  मेरे स्वप्न-जलते हुए वन का वसन्त-खण्ड तीन-दुष्यंत कुमार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Dushyant Kumar  गीत-अब तो पथ यही है-जलते हुए वन का …

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फिर कर लेने दो प्यार प्रिये-दुष्यंत कुमार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Dushyant Kumar

फिर कर लेने दो प्यार प्रिये-दुष्यंत कुमार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Dushyant Kumar फिर कर लेने दो प्यार प्रिये अब अंतर में अवसाद नहीं चापल्य नहीं उन्माद नहीं सूना-सूना सा जीवन है कुछ शोक नहीं आल्हाद नहीं तव स्वागत हित हिलता रहता अंतरवीणा का तार प्रिये फिर कर लेने दो प्यार प्रिये …

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ग़ज़ल-याद आता है कि मैं हूँ शंकरन या मंकरन-दुष्यंत कुमार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Dushyant Kumar

ग़ज़ल-याद आता है कि मैं हूँ शंकरन या मंकरन-दुष्यंत कुमार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Dushyant Kumar याद आता है कि मैं हूँ शंकरन या मंकरन आप रुकिेए फ़ाइलों में देख आता हूँ मैं हैं ये चिंतामन अगर तो हैं ये नामों में भ्रमित इनको दारु की ज़रूरत है ये बतलाता हूँ मैं …

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 होली की ठिठोली-ग़ज़ल (2)-दुष्यंत कुमार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Dushyant Kumar

होली की ठिठोली-ग़ज़ल (2)-दुष्यंत कुमार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Dushyant Kumar धर्मयुग सम्पादक टू दुष्यंत कुमार (धर्मवीर भारती का उत्तर बक़लम दुष्यंत कुमार) जब आपका ग़ज़ल में हमें ख़त मिला हुज़ूर । पढ़ते ही यक-ब-यक ये कलेजा हिला हुज़ूर । ये “धर्मयुग” हमारा नहीं सबका पत्र है, हम घर के आदमी हैं …

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होली की ठिठोली-ग़ज़ल (1)-दुष्यंत कुमार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Dushyant Kumar

होली की ठिठोली-ग़ज़ल (1)-दुष्यंत कुमार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Dushyant Kumar दुष्यंत कुमार टू धर्मयुग संपादक पत्थर नहीं हैं आप तो पसीजिए हुज़ूर । संपादकी का हक़ तो अदा कीजिए हुज़ूर । अब ज़िंदगी के साथ ज़माना बदल गया, पारिश्रमिक भी थोड़ा बदल दीजिए हुज़ूर । कल मयक़दे में चेक दिखाया था …

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जलते हुए वन का वसन्त-खण्ड तीन-दुष्यंत कुमार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Dushyant Kumar

जलते हुए वन का वसन्त-खण्ड तीन-दुष्यंत कुमार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Dushyant Kumar तुझे कैसे भूल जाऊँ-जलते हुए वन का वसन्त-खण्ड तीन-दुष्यंत कुमार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Dushyant Kumar  मेरे स्वप्न-जलते हुए वन का वसन्त-खण्ड तीन-दुष्यंत कुमार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Dushyant Kumar  गीत-अब तो पथ …

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तुझे कैसे भूल जाऊँ-जलते हुए वन का वसन्त-खण्ड तीन-दुष्यंत कुमार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Dushyant Kumar

तुझे कैसे भूल जाऊँ-जलते हुए वन का वसन्त-खण्ड तीन-दुष्यंत कुमार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Dushyant Kumar अब उम्र का ढलान उतरते हुए मुझे आती है तेरी याद, तुझे कैसे भूल जाऊं। गहरा गए हैं खूब धुँधलके निगाह में गो राहरो नहीं है कहीं, फिर भी राह में- लगते हैं चंद साए उभरते …

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 मेरे स्वप्न-जलते हुए वन का वसन्त-खण्ड तीन-दुष्यंत कुमार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Dushyant Kumar

मेरे स्वप्न-जलते हुए वन का वसन्त-खण्ड तीन-दुष्यंत कुमार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Dushyant Kumar मेरे स्वप्न तुप्तारे पास सहारा पाने आएँगे । इस बूढ़े पीपल की छाया में सुस्ताने आएँगे। हौले-हौले पाँव हिलाओ, जल सोया है छेड़ो मत, हम सब अपने-अपने दीपक यहीं सिराने आएँगे। थोड़ी आंच बची रहने दो, थोड़ा धुआँ …

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 गीत-अब तो पथ यही है-जलते हुए वन का वसन्त-खण्ड तीन-दुष्यंत कुमार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Dushyant Kumar

गीत-अब तो पथ यही है-जलते हुए वन का वसन्त-खण्ड तीन-दुष्यंत कुमार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Dushyant Kumar जिंदगी ने कर लिया स्वीकार, अब तो पथ यही है| अब उफनते ज्वार का आवेग मद्धिम हो चला है, एक हलका सा धुंधलका था कहीं, कम हो चला है, यह शिला पिघले न पिघले, रास्ता …

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होंठों के नीचे फिर-जलते हुए वन का वसन्त-खण्ड तीन-दुष्यंत कुमार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Dushyant Kumar

होंठों के नीचे फिर-जलते हुए वन का वसन्त-खण्ड तीन-दुष्यंत कुमार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Dushyant Kumar इधर और झुक गया है आकाश एक जले हुए वन में वसंत आ गया है ! झुरमुट में, चिड़ियों का झुंड लौट आया है मरे हुए पत्तों पर गति थिरक उठी है। मेरे पाँवों में एक …

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