डॉ. ओमप्रकाश सिंह -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Dr. Omprakash Singh

-डॉ. ओमप्रकाश सिंह -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Dr. Omprakash Singh इंद्रप्रस्थ के लोग-डॉ. ओमप्रकाश सिंह -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Dr. Omprakash Singh अरे हरिण मन-डॉ. ओमप्रकाश सिंह -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Dr. Omprakash Singh आ गया आतंक-डॉ. ओमप्रकाश सिंह -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi …

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इंद्रप्रस्थ के लोग-डॉ. ओमप्रकाश सिंह -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Dr. Omprakash Singh

इंद्रप्रस्थ के लोग-डॉ. ओमप्रकाश सिंह -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Dr. Omprakash Singh इंद्रप्रस्थ की बात करें क्या इंद्रप्रस्थ के लोग! सिंहासन के आसपास ही सुलग रही है आँखें जोड़ रहे जो भीतर-बाहर इंद्रप्रस्थ की साँसें राजा का मन ही बहलाते इंद्रप्रस्थ के लोग! रिश्तों का अवमूल्यन करने की मन में हैं …

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अरे हरिण मन-डॉ. ओमप्रकाश सिंह -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Dr. Omprakash Singh

अरे हरिण मन-डॉ. ओमप्रकाश सिंह -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Dr. Omprakash Singh अरे हरिण मन! चल, चंदन वन गूँज रहा शहनाई से! नव सपनों की झील भला क्यों थर्राई है आँखों में आँचल कहाँ चाँद का अटका है बादल की शाखों में अरे हरिण मन! नाच रहा क्यों वंशीवट पुरवाई से! …

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आ गया आतंक-डॉ. ओमप्रकाश सिंह -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Dr. Omprakash Singh

आ गया आतंक-डॉ. ओमप्रकाश सिंह -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Dr. Omprakash Singh हाथ में बंदूक लेकर आ गया आतंक! काँपता बाज़ार थर्राते हैं चौराहे स्वप्न-पक्षी के परों को अब कोई बाँधे लो, खुले आकाश पर गहरा गया आतंक! आज रिश्ते काँच की दीवार से लड़ते देहरी पर नई कीलें ठोंककर हँसते …

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 स्वर्ण लंकाएँ-डॉ. ओमप्रकाश सिंह -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Dr. Omprakash Singh

स्वर्ण लंकाएँ-डॉ. ओमप्रकाश सिंह -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Dr. Omprakash Singh क्या करोगे अब बनाकर सेतु सागर पर राजपथों पर खड़ी हैं स्वर्णलंकाएँ। पाप का रावण चढ़ा है स्वर्ण के रथ पर, हो रहा जयगान उसका पुण्य के पथ पर, राक्षसों ने पाँव फैलाए गली-कूचे आज उनसे स्वर मिलाती हैं अयोध्याएँ। …

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फाल्गुन का गीत-डॉ. ओमप्रकाश सिंह -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Dr. Omprakash Singh

फाल्गुन का गीत-डॉ. ओमप्रकाश सिंह -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Dr. Omprakash Singh संध्या के चेहरे पर फागुन ने रच दिया गुलाल। पीले वस्त्र पहनकर आई वैरागिन सरसों आम और महुआ बौराये लगते हैं बरसों रंग-बिरंगे बिंब उभरते झाँक रहा है ताल। खेल रहा ले पिचकारी सूरज आँगन आँगन फैल रही खुशबू …

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