गर वोह नहीं होता तो ये मंज़र भी ना होता-ग़ज़लें-ख़याल लद्दाखी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Khayal Ladakhi

गर वोह नहीं होता तो ये मंज़र भी ना होता-ग़ज़लें-ख़याल लद्दाखी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Khayal Ladakhi गर वोह नहीं होता तो ये मंज़र भी ना होता सहरा नहीं होते ये समन्दर भी ना होता दुश्मन जो मिरी ज़ात के अक्सर नहीं होते अपनों का सहारा मुझे दम भर भी ना होता …

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