खोलकर बाँहों के दो उलझे हुए-से मिसरे-कुछ और नज्में -गुलज़ार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gulzar
खोलकर बाँहों के दो उलझे हुए-से मिसरे-कुछ और नज्में -गुलज़ार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gulzar खोलकर बाँहों के दो उलझे हुए-से मिसरे हौले से चूमके दो नींद से छलकी हुई पलकें होंट से लिपटी हुई जुल्फ़ को मिन्नत से हटाकर कान पर धीमे से रख दूँगा जो आवाज़ के दो होंट मैं …