खुलने लगे हैं तोरण-बांग्ला कविता(अनुवाद हिन्दी में) -शंख घोष -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Shankha Ghosh
खुलने लगे हैं तोरण-बांग्ला कविता(अनुवाद हिन्दी में) -शंख घोष -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Shankha Ghosh यह चिट्ठी किसे लिखूँगा मैं अभी तक नहीं जानता लेकिन लिखनी ही पड़ेगी लिखना पड़ेगा कि अब समय हो आया है समेट लेने का समय …. अब उठना ही पड़ेगा अब कोई काम नहीं कि जिसे अधूरा छोड़ …