खुदा-२-रात पश्मीने की-गुलज़ार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gulzar 

खुदा-२-रात पश्मीने की-गुलज़ार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gulzar मैं दीवार की इस जानिब हूँ । इस जानिब तो धूप भी है हरियाली भी! ओस भी गिरती है पत्तों पर, आ जाये तो आलसी कोहरा, शाख पे बैठा घंटों ऊँघता रहता है। बारिश लम्बी तारों पर नटनी की तरह थिरकती, आँखों से गुम …

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