ख़ारों के तलबगार तेरे जैसे हों-ग़ज़लें-ख़याल लद्दाखी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Khayal Ladakhi
ख़ारों के तलबगार तेरे जैसे हों-ग़ज़लें-ख़याल लद्दाखी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Khayal Ladakhi ख़ारों के तलबगार तेरे जैसे हों बाज़ार के बाज़ार तेरे जैसे हों फिर मुझको सलीबों की ज़रूरत कैसी दो चार अगर यार तेरे जैसे हों