अंतर्यात्रा-परंतप मिश्र-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Parantap Mishra

अंतर्यात्रा-परंतप मिश्र-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Parantap Mishra मैं मजदूर हूँ-अंतर्यात्रा-परंतप मिश्र-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Parantap Mishra गुलाब-अंतर्यात्रा-परंतप मिश्र-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Parantap Mishra महामारी-अंतर्यात्रा-परंतप मिश्र-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Parantap Mishra उपलब्धि-अंतर्यात्रा-परंतप मिश्र-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita …

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मैं मजदूर हूँ-अंतर्यात्रा-परंतप मिश्र-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Parantap Mishra

मैं मजदूर हूँ-अंतर्यात्रा-परंतप मिश्र-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Parantap Mishra   कर्म की अँगीठी पर वेदना की आग से स्वाभिमान की रोटियाँ पकाई हैं न लेता भीख, न अहसान किसी का परिश्रम के पवन से निज की साँसें चलाई हैं पर आज रोटी को मोहताज तजकर सब लोकलाज मूक बचपन को निहार …

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गुलाब-अंतर्यात्रा-परंतप मिश्र-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Parantap Mishra

गुलाब-अंतर्यात्रा-परंतप मिश्र-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Parantap Mishra   तुम्हारे घर से निकलती, अर्थी को देखकर, चेतना शून्य हो गया था । सोचा कहीं तुम तो नहीं इस ताबूत में, तुम्हे तो कुछ नहीं हुआ है न ? जिन सम्बन्धों को बरसे पहले, पीछे छोड़ आये थे हम, अपने परिवारों के कहने …

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महामारी-अंतर्यात्रा-परंतप मिश्र-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Parantap Mishra

महामारी-अंतर्यात्रा-परंतप मिश्र-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Parantap Mishra   मानवीय अध्यन के परिणामस्वरूप, जगत के जीवों का विभाजन हुआ, वनस्पति जगत और पशु जगत । मानव ने अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करते हुए, स्वयं को पशु जगत से अलग कर लिया, अपनी बुद्धि कौशल से जगत के परिणामों को, अपने पक्ष में करने …

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उपलब्धि-अंतर्यात्रा-परंतप मिश्र-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Parantap Mishra

उपलब्धि-अंतर्यात्रा-परंतप मिश्र-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Parantap Mishra   पहाड़ों में रहना, थोड़ा दुष्कर हुआ करता है, पर रचनात्मक, प्रकृति की नैसर्गिकता से सज्ज, पृथ्वी का वरदान । नवयौवना के यौवन सा सुरभित, तरुणी की अंगड़ाई सी अलसाई, कपोल-किसलय की अरुणाई, मन्द पवन प्रवाहित सुखदायी, झरनों से बहता मादक संगीत, पक्षियों के …

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संतुलन-अंतर्यात्रा-परंतप मिश्र-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Parantap Mishra

संतुलन-अंतर्यात्रा-परंतप मिश्र-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Parantap Mishra   विकास के पथ पर, दौड़ता आधुनिक मानव, प्रकृति के नियमों की अवहेलना, करता हुआ अग्रसर है । जीवन में संतुलन की अनिवार्यता का, उपहास करता हुआ, अस्तित्व के संकट से अनजान है । इसीलिए तो चल पड़ा है, मौलिकता को त्यागकर, मनमानी राहों …

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पतझड़-अंतर्यात्रा-परंतप मिश्र-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Parantap Mishra

पतझड़-अंतर्यात्रा-परंतप मिश्र-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Parantap Mishra   इस बार फिर हवा से सरकते सूखे पत्तों ने सिसकते हुए कहा- ‘क्या तुम भी बदल गयी हो बदलते हुए मौसम की तरह ? आज भी तुम्हारा वह हमराही जो वर्षों से है प्रतीक्षित रोज आकर उसी पेड़ की टेक लेकर घंटों शून्य …

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हौसला बहोत है–अंतर्यात्रा-परंतप मिश्र-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Parantap Mishra

हौसला बहोत है–अंतर्यात्रा-परंतप मिश्र-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Parantap Mishra   मुसाफ़िर हूँ बेशक, सफ़र लम्बा बहोत है हमसफ़र साथ है तो हमें हौसला बहोत है देखता नहीं अपनी कोशिशों की हार-जीत कामयाबियों के रास्तों में इंतिहा बहोत है यूँ तो चलता रहता हूँ, बिना थके रात-दिन क़रीब और आओ अभी फ़ासला …

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आत्मिक मित्र-अंतर्यात्रा-परंतप मिश्र-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Parantap Mishra

आत्मिक मित्र-अंतर्यात्रा-परंतप मिश्र-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Parantap Mishra   वर्षों बाद आज जब फ़ोन की घंटी के साथ उसका नाम देखा ‘आत्मिक मित्र’, जो शायद आज तक इसीलिए सेव रह गया की शायद कभी उसे भी मेरी फ़िक्र हो यही तो वह नाम था जिसे हम एक दूसरे को बुलाया करते …

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संदेश-अंतर्यात्रा-परंतप मिश्र-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Parantap Mishra

संदेश-अंतर्यात्रा-परंतप मिश्र-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Parantap Mishra   मैंने आसमान के पन्नों पर, शब्दों की तूलिका से, अपने मनोभावों के रंग संजोये हैं, जिसे कभी तुम इन्द्रधनुष कहते हो समय के मस्तक पर सुशोभित, हर कला-कृति की एक कहानी है, भूत और वर्तमान की सीमा-रेखा के बीच, सजीव-निर्जीव का मूक वार्तालाप …

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