लाहूत पर न देखें जो क़ुदसियाँ तमाशा-इंशा अल्ला खाँ ‘इंशा’ -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Insha Allah Khan Insha

लाहूत पर न देखें जो क़ुदसियाँ तमाशा-इंशा अल्ला खाँ ‘इंशा’ -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Insha Allah Khan Insha लाहूत पर न देखें जो क़ुदसियाँ तमाशा सो हम को है दिखाता इश्क़-ए-बुताँ तमाशा टुक कीजे चश्म-ए-दिल से याँ सैर मय-कदे की हैगा अजब मज़े का पीर-ए-मुग़ाँ तमाशा जिस ने सुने ये मेरे …

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मियाँ चश्म-ए-जादू पे इतना घमंड-इंशा अल्ला खाँ ‘इंशा’ -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Insha Allah Khan Insha

मियाँ चश्म-ए-जादू पे इतना घमंड-इंशा अल्ला खाँ ‘इंशा’ -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Insha Allah Khan Insha मियाँ चश्म-ए-जादू पे इतना घमंड ख़त-ओ-ख़ाल-ओ-गेसू पे इतना घमंड अजी सर उठा कर इधर देखना इसी चश्म-ओ-अबरू पे इतना घमंड नसीम-ए-गुल इस ज़ुल्फ़ में हो तो आ न कर अपनी ख़ुशबू प इतना घमंड शब-ए-मह …

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बे-मदद हक़ के करें क्या-इंशा अल्ला खाँ ‘इंशा’ -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Insha Allah Khan Insha

बे-मदद हक़ के करें क्या-इंशा अल्ला खाँ ‘इंशा’ -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Insha Allah Khan Insha बे-मदद हक़ के करें क्या मर्दुम-ए-दुनिया मदद कब तलक बाला मदद ऐ आलम-ए-बाला मदद खींचता हूँ ना’रा-ए-हक़ खेलता धमाल हूँ ऐ मिरे साईं मदद दाता मदद मौला मदद अब किसी मूज़ी को जुड़ता हूँ फिर …

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खोल आग़ोश न तू मुझ से रुकावट से लिपट-इंशा अल्ला खाँ ‘इंशा’ -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Insha Allah Khan Insha

खोल आग़ोश न तू मुझ से रुकावट से लिपट-इंशा अल्ला खाँ ‘इंशा’ -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Insha Allah Khan Insha खोल आग़ोश न तू मुझ से रुकावट से लिपट अब जो लिपटा है तो आ प्यार की करवट से लिपट उस ने सर अपना धुना देख शिगाफ़-ए-दर से कर के ग़श …

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जिगर की आग बुझे जिस से जल्द वो शय ला-इंशा अल्ला खाँ ‘इंशा’ -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Insha Allah Khan Insha

जिगर की आग बुझे जिस से जल्द वो शय ला-इंशा अल्ला खाँ ‘इंशा’ -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Insha Allah Khan Insha जिगर की आग बुझे जिस से जल्द वो शय ला लगा के बर्फ़ में साक़ी सुराही-ए-मय ला क़दम को हाथ लगाता हूँ उठ कहीं घर चल ख़ुदा के वास्ते इतने …

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वो परी ही नहीं कुछ हो के कड़ी-इंशा अल्ला खाँ ‘इंशा’ -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Insha Allah Khan Insha

वो परी ही नहीं कुछ हो के कड़ी-इंशा अल्ला खाँ ‘इंशा’ -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Insha Allah Khan Insha वो परी ही नहीं कुछ हो के कड़ी मुझ से लड़ी आँख नर्गिस से भी दो-चार घड़ी मुझ से लड़ी वास्ते तेरे मिरा रंग-महल है दुश्मन तेरी ख़ातिर तो हर इक छोटी …

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साहब के हर्ज़ा-पन से हर एक को गिला है-इंशा अल्ला खाँ ‘इंशा’ -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Insha Allah Khan Insha

साहब के हर्ज़ा-पन से हर एक को गिला है-इंशा अल्ला खाँ ‘इंशा’ -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Insha Allah Khan Insha साहब के हर्ज़ा-पन से हर एक को गिला है मैं जो निबाहता हूँ मेरा है हौसला है चौदह ये ख़ानवादे हैं चार पीर-तन में चिश्तिय्या सब से अच्छे ये ज़ोर सिलसिला …

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ये किस से चाँदनी में हम-इंशा अल्ला खाँ ‘इंशा’ -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Insha Allah Khan Insha

ये किस से चाँदनी में हम-इंशा अल्ला खाँ ‘इंशा’ -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Insha Allah Khan Insha   ये किस से चाँदनी में हम ब-ज़ेर-ए-आसमाँ लिपटे कि बाहम अर्श पर मारे ख़ुशी के क़ुदसियाँ लिपटे हुदी-ख़्वाँ वादी-ए-मजनूँ में नाक़े को न ले जाना मबादा इक बगूला सा ब-पा-ए-सारबाँ लिपटे अदब गर …

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किनाया और ढब का इस मिरी मज्लिस में-इंशा अल्ला खाँ ‘इंशा’ -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Insha Allah Khan Insha

किनाया और ढब का इस मिरी मज्लिस में-इंशा अल्ला खाँ ‘इंशा’ -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Insha Allah Khan Insha किनाया और ढब का इस मिरी मज्लिस में कम कीजे अजी सब ताड़ जावेंगे न ऐसा तो सितम कीजे तुम्हारे वास्ते सहरा-नशीं हूँ एक मुद्दत से बसान-ए-आहू-ए-वहशी न मुझ से आप रम …

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हैं जो मुरव्वज मेहर-ओ-वफ़ा के सब-इंशा अल्ला खाँ ‘इंशा’ -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Insha Allah Khan Insha

हैं जो मुरव्वज मेहर-ओ-वफ़ा के सब-इंशा अल्ला खाँ ‘इंशा’ -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Insha Allah Khan Insha हैं जो मुरव्वज मेहर-ओ-वफ़ा के सब सर-रिश्ते भूल गए फिर गए तुम तो क़ौल-ओ-क़सम से अपने नविश्ते भूल गए जब देखो तब लाठी ठेंगे खट खट करते फिरते हैं उड़ते हैं कोई शैख़-जी साहब …

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