कतआत-शायरी-मिर्ज़ा ग़ालिब-Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Mirza Ghalib Poetry/shers p
कतआत-शायरी-मिर्ज़ा ग़ालिब-Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Mirza Ghalib Poetry/shers p ========== एक अहले-दर्द ने सुनसान जो देखा कफ़स यों कहा आती नहीं अब कयों सदाए-अन्दलीब बाल-ओ-पर दो-चार दिखला कर कहा सय्याद ने ये निशानी रह गयी है अब बजाए- अन्दलीब ========== शब को ज़ौके-गुफ़तगू से तेरा दिल बेताब था शोख़ी-ए-वहशत से अफ़साना फ़ुसूने-ख़्वाब था वां …