जैसा यह मन भूत है, और न दुतीय वैताल-ज्ञान-वैराग्य कुण्डलियाँ-गिरिधर कविराय-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Giridhar Kavirai

जैसा यह मन भूत है, और न दुतीय वैताल-ज्ञान-वैराग्य कुण्डलियाँ-गिरिधर कविराय-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Giridhar Kavirai जैसा यह मन भूत है, और न दुतीय वैताल । छिन में चढ़ै आकाश को, छिन में धंसै पताल ॥ छिन में धंसै पताल, होत छिन में कम जादा । छिन में शहर-निवास करै छिन …

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