Tehzeeb Hafi-Ghazals Part 6

Tehzeeb Hafi-Ghazals Part 6

तारीकियों को आग लगे और दिया जले

तारीकियों को आग लगे और दिया जले
ये रात बैन करती रहे और दिया जले

उस की ज़बाँ में इतना असर है कि निस्फ़ शब
वो रौशनी की बात करे और दिया जले

तुम चाहते हो तुम से बिछड़ के भी ख़ुश रहूँ
या’नी हवा भी चलती रहे और दिया जले

क्या मुझ से भी अज़ीज़ है तुम को दिए की लौ
फिर तो मेरा मज़ार बने और दिया जले

सूरज तो मेरी आँख से आगे की चीज़ है
मैं चाहता हूँ शाम ढले और दिया जले

तुम लौटने में देर न करना कि ये न हो
दिल तीरगी में घेर चुके और दिया जले

 

ख़ाक ही ख़ाक थी और ख़ाक भी क्या कुछ नहीं था

ख़ाक ही ख़ाक थी और ख़ाक भी क्या कुछ नहीं था
मैं जब आया तो मेरे घर की जगह कुछ नहीं था।

क्या करूं तुझसे ख़यानत नहीं कर सकता मैं
वरना उस आंख में मेरे लिए क्या कुछ नहीं था।

ये भी सच है मुझे कभी उसने कुछ ना कहा
ये भी सच है कि उस औरत से छुपा कुछ नहीं था।

अब वो मेरे ही किसी दोस्त की मनकूहा है
मै पलट जाता मगर पीछे बचा कुछ नहीं था।

एक और शख़्स छोड़कर चला गया तो क्या हुआ

एक और शख़्स छोड़कर चला गया तो क्या हुआ
हमारे साथ कौन सा ये पहली मर्तबा हुआ।

अज़ल से इन हथेलियों में हिज्र की लकीर थी
तुम्हारा दुःख तो जैसे मेरे हाथ में बड़ा हुआ।

मेरे खिलाफ दुश्मनों की सफ़ में है वो और मैं
बहुत बुरा लगूँगा उस पर तीर खींचता हुआ।

 

जो तेरे साथ रहते हुए सोगवार हो

जो तेरे साथ रहते हुए सोगवार हो
लानत हो ऐसे शख़्स पे और बेशुमार हो

अब इतनी देर भी ना लगा, ये हो ना कहीं
तू आ चुका हो और तेरा इंतज़ार हो

मै फूल हूँ तो फिर तेरे बालो में क्यों नही हूँ
तू तीर है तो मेरे कलेजे के पार हो

एक आस्तीन चढ़ाने की आदत को छोड़ कर
‘हाफ़ी’ तुम आदमी तो बहुत शानदार हो

 

चेहरा देखें तेरे होंट और पलकें देखें

चेहरा देखें तेरे होंट और पलकें देखें
दिल पे आँखे रखें तेरी साँसें देखें

सुर्ख़ लबों से सब्ज़ दुआएँ फूटी हैं
पीले फूलों तुम को नीली आँखें देखें

साल होने को आया है वो कब लौटेगा
आओ खेत की सैर को निकलें कूजें देखें

थोडी देर में जंगल हम को आक़ करेगा
बरगद देखें या बरगद की शाख़े देखें

मेरे मालिक आप तो सब कुछ कर सकते हैं
साथ चलें हम और दुनिया की आँखें देखें

हम तेरे होंटो की लर्ज़िश कब भूले हैं
पानी में पत्थर फेंके और लहरें देखें

 

तू ने क्या क़िंदील जला दी शहज़ादी

तू ने क्या क़िंदील जला दी शहज़ादी
सुर्ख़ हुई जाती है वादी शहज़ादी

शीश-महल को साफ़ किया तिरे कहने पर
आइनों से गर्द हटा दी शहज़ादी

अब तो ख़्वाब-कदे से बाहर पाँव रख
लौट गए है सब फ़रियादी शहज़ादी

तेरे ही कहने पर एक सिपाही ने
अपने घर को आग लगा दी शहज़ादी

मैं तेरे दुश्मन लश्कर का शहज़ादा
कैसे मुमकिन है ये शादी शहज़ादी

 

ये एक बात समझने में रात हो गई है

ये एक बात समझने में रात हो गई है
मैं उस से जीत गया हूँ कि मात हो गई है

मैं अब के साल परिंदों का दिन मनाऊँगा
मिरी क़रीब के जंगल से बात हो गई है

बिछड़ के तुझ से न ख़ुश रह सकूंगा सोचा था
तिरी जुदाई ही वजह-ए-नशात हो गई है

बदन में एक तरफ़ दिन जुलूअ मैं ने किया
बदन के दूसरे हिस्से में रात हो गई है

मैं जंगलों की तरफ़ चल पडा हूंँ छोड़ के घर
ये क्या कि घर की उदासी भी साथ हो गई है

रहेगा याद मदीने से वापसी का सफ़र
मैं नज़्म लिखने लगा था कि नात हो गई है

 

उसे भी साथ रखता, और तुझे भी अपना बना लेता

उसे भी साथ रखता, और तुझे भी अपना बना लेता
अगर मैं चाहता, तो दिल में कोई चोर दरवाज़ा बना लेता

ख्वाब पुरे कर के खुश हूँ, पर ये पछतावा नहीं जाता
के मुस्तक़बिल बनाने से तो अच्छा था, तुझे अपना बना लेता

अकेला आदमी हूँ, और अचानक आये हो जो कुछ था हाज़िर है,
और तुम आने से, पहले बता देते, तो कुछ अच्छा बना लेता

बिछड़कर उसका दिल लग भी गया तो क्या लगेगा

बिछड़कर उसका दिल लग भी गया तो क्या लगेगा
वो थक जायेगा और मेरे गले से आ लगेगा

मैं मुश्किल में तुम्हारे काम आऊँ या ना आऊँ
मुझे आवाज़ दे लेना तुम्हें अच्छा लगेगा

मैं जिस कोशिश से उसको भूल जाने में लगा हूँ
ज्यादा भी अगर लग जाये तो हफ़्ता लगेगा

 

मेरे बस में नहीं वरना कुदरत का लिखा हुआ काटता

मेरे बस में नहीं वरना कुदरत का लिखा हुआ काटता
तेरे हिस्से में आए बुरे दिन कोई दूसरा काटता

लारियों से ज्यादा बहाव था तेरे हर इक लफ्ज़ में
मैं इशारा नहीं काट सकता तेरी बात क्या काटता

मैंने भी ज़िंदगी और शब ए हिज़्र काटी है सबकी तरह
वैसे बेहतर तो ये था के मैं कम से कम कुछ नया काटता

तेरे होते हुए मोमबत्ती बुझाई किसी और ने
क्या ख़ुशी रह गयी थी जन्मदिन की, मैं केक क्या काटता

कोई भी तो नहीं जो मेरे भूखे रहने पे नाराज़ हो
जेल में तेरी तस्वीर होती तो हंसकर सज़ा काटता

 

तुझे भी खौफ था तेरी मुखालफत करूँगा मै

तुझे भी खौफ था तेरी मुखालफत करूँगा मै
और अब नहीं करूँगा तो गलत करूँगा मै

उसे कहो के अहद-ए-तर्क-ए-रस्मो-राह लिख के दे
कलाई काट के लहू से दशतख्त करूँगा मै

मेरे लबों ने उस ज़मीं को दाग दार कर दिया
गलत नहीं भी हूँ तो उससे माजरत करूँगा मै

तुझे भी खौफ था तेरी मुखालफत करूँगा मैं
और अब अगर नही करूंगा तो गलत करुँगा मैं

 

ज़िन्दगी भर फूल ही भिजवाओगे

ज़िन्दगी भर फूल ही भिजवाओगे
या किसी दिन खुद भी मिलने आओगे

पैहरेदारों से बचूंगा कब तलक
दोस्त तुम एक दिन मुझे मरवाओगे

खुद को आईने में कम देखा करो
एक दिन सूरज-मुखी बन जाओगे