तहज़ीब हाफी Shayari Collection | Tehzeeb Hafi Poetry

तहज़ीब हाफी Shayari Collection | Tehzeeb Hafi Poetry

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मेरे बस में नहीं वरना कुदरत का लिखा हुआ काटता

 

मेरे बस में नहीं वरना कुदरत का लिखा हुआ काटता
तेरे हिस्से में आए बुरे दिन कोई दूसरा काटता

लारियों से ज्यादा बहाव था तेरे हर इक लफ्ज़ में
मैं इशारा नहीं काट सकता तेरी बात क्या काटता

मैंने भी ज़िंदगी और शब ए हिज़्र काटी है सबकी तरह
वैसे बेहतर तो ये था के मैं कम से कम कुछ नया काटता

तेरे होते हुए मोमबत्ती बुझाई किसी और ने
क्या ख़ुशी रह गयी थी जन्मदिन की, मैं केक क्या काटता

कोई भी तो नहीं जो मेरे भूखे रहने पे नाराज़ हो
जेल में तेरी तस्वीर होती तो हंसकर सज़ा काटता

 

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जो तेरे साथ रहते हुए सोगवार हो

जो तेरे साथ रहते हुए सोगवार हो
लानत हो ऐसे शख़्स पे और बेशुमार हो

अब इतनी देर भी ना लगा, ये हो ना कहीं
तू आ चुका हो और तेरा इंतज़ार हो

मै फूल हूँ तो फिर तेरे बालो में क्यों नही हूँ
तू तीर है तो मेरे कलेजे के पार हो

एक आस्तीन चढ़ाने की आदत को छोड़ कर
‘हाफ़ी’ तुम आदमी तो बहुत शानदार हो

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मुझ से मत पूछो के उस शख़्स में क्या अच्छा है

मुझ से मत पूछो के उस शख़्स में क्या अच्छा है
अच्छे अच्छों से मुझे मेरा बुरा अच्छा है

किस तरह मुझ से मुहब्बत में कोई जीत गया
ये न कह देना के बिस्तर में बड़ा अच्छा है

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बिछड़कर उसका दिल लग भी गया तो क्या लगेगा

बिछड़कर उसका दिल लग भी गया तो क्या लगेगा
वो थक जाएगा और मेरे गले से आ लगेगा

मैं मुश्किल में तुम्हारे काम आऊँ या ना आऊँ
मुझे आवाज़ दे लेना तुम्हे अच्छा लगेगा

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उसी जगह पर जहाँ कई रास्ते मिलेंगे

उसी जगह पर जहाँ कई रास्ते मिलेंगे
पलट के आए तो सबसे पहले तुझे मिलेंगे।

अगर कभी तेरे नाम पर जंग हो गई तो
हम ऐसे बुजदिल भी पहले सफ में खड़े मिलेगे।

तुझे ये सड़के मेरे तवस्सुत से जानती हैं
तुझे हमेशा ये सब इशारे खुले मिलेंगे।

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मरियम

मैं आईनों से गुरेज करते हुए
पहाड़ों की कोख में सांस लेने वाली उदास झीलों में अपने चेहरे का अक्स देखूं तो सोचता हूं
की मुझ में ऐसा भी क्या है मरियम
तुम्हारी बेसाख्ता मोहब्बत जमीं पे फैले हुए समंदर की वो सतो से भी मावरा है
मोहब्बतों के समंदरों में बस एक बहिरा-ए-हिज़्र है जो बुरा है मरियम
खला-नवरदो को जो सितारे मुआवजे में मिले थे
वो उनकी रोशनी में ये सोचते हैं
कि वक्त ही तो खुदा है मरियम
और इस ताल्लुक की गठरियो में
रुकी हुई साहतो से हटकर
मेरे लिए और क्या है मरियम
अभी बहुत वक्त है कि हम वक्त दे जरा एक दूसरे को
मगर हम इक साथ रहकर भी ख़ुश न रह सके तो मुआफ करना
कि मैंने बचपन ही दुख की दहलीज पर गुजारा
मैं उन चिरागों का दुख हूं जिनकी लवे शब-ए-इंतजार में बुझ गई
मगर उनसे उठने वाला धुआ ज़मान-ओ-मकान में फैला हुआ है अब तक
मैं कोसारो और उनके जिस्मों से बहने वाली उन आबशारों का दुख हूं जिनको
जमीं के चेहरों पर रेंगते रेंगते ज़माने गुजर गए हैं
जो लोग दिल से उतर गए हैं
किताबें आंखों पर रख के सोए थे मर गए हैं
मैं उनका दुख हूं
जो जिस्म ख़ुद लज्जित से उकता के आईनों की तसल्लीओ में पले बढ़े हैं
मैं उनका दुख हूं
मैं घर से भागे हुओ का दुख हूं
मैं रात जागे हुओ का दुख हूं
मैं साहिलों से बंधी हुई कश्तियों का दुख हूं
मैं लापता लड़कियों का दुख हूं
खुली हुए खिड़कियों का दुख हूं
मीटी हुई तख्तियां का दुख हूं
थके हुए बादलों का दुख हूं
जले हुए जंगलों का दुख हूं
जो खुल कर बरसी नहीं है, मैं उस घटा का दुख हूं
जमीं का दुख हूं
खुदा का दुख हूं
बला का दुख हूं
जो शाख सावन में फूटती है वो शाख तुम हो
जो पिंग बारिश के बाद बन बन के टूटती है वो पिंग तुम हो
तुम्हारे होठों से साहतो ने समाअतो का सबक लिया है
तुम्हारी ही सा के संदली से समुंदरों ने नमक लिया है
तुम्हारा मेरा मुआमला ही जुदा है मरियम
तुम्हें तो सब कुछ पता है मरियम।

 

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कैसे उसने ये सब कुछ मुझसे छुपकर बदला

 

कैसे उसने ये सब कुछ मुझसे छुपकर बदला
चेहरा बदला रस्ता बदला बाद में घर बदला

मैं उसके बारे में ये कहता था लोगों से
मेरा नाम बदल देना वो शख़्स अगर बदला

वो भी ख़ुश था उसने दिल देकर दिल माँगा है
मैं भी खुश हूँ मैंने पत्थर से पत्थर बदला

मैंने कहा क्या मेरी ख़ातिर ख़ुद को बदलोगे
और फिर उसने नज़रें बदलीं और नंबर बदला

 

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तुम्हें हुस्न पर दस्तरस है मोहब्बत

तुम्हें हुस्न पर दस्तरस है मोहब्बत – वोहब्बत बड़ा जानते हो
तो फिर ये बताओ कि तुम उसकी आंखों के बारे में क्या जानते हो

ये ज्योग्राफिया, फ़लसफ़ा, साइकोलाॅजी, साइंस, रियाज़ी वगैरह
ये सब जानना भी अहम है मगर उसके घर का पता जानते हो ?

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हम मिलेंगे कहीं

अजनबी शहर की ख़्वाब होती हुई शाहराओं पे और शाहराओं पे फैली हुई धूप में
एक दिन हम कहीं साथ होगे वक़्त की आँधियों से अटी साहतों पर से मिट्टी हटाते हुये
एक ही जैसे आँसू बहाते हुये
हम मिलेंगे घने जंगलो की हरी घास पर और किसी शाख़-ए-नाज़ुक पर पड़ते हुये बोझ की दास्तानों मे खो जायेंगे
हम सनोबर के पेड़ों की नोकीले पत्तों से सदियों से सोये हुये देवताओं की आँखें चभो जायेंगे
हम मिलेंगे कहीं बर्फ़ के बाजुओं मे घिरे पर्वतों पर
बाँझ क़ब्रो मे लेटे हुये कोह पेमाओं की याद में नज़्म कहते हुये
जो पहाड़ों की औलाद थें, और उन्हें वक़्त आने पर माँ बाप ने अपनी आग़ोश में ले लिया
हम मिलेंगे कही शाह सुलेमान के उर्स मे हौज़ की सीढियों पर वज़ू करने वालो के शफ़्फ़ाफ़ चेहरों के आगे
संगेमरमर से आरस्ता फ़र्श पर पैर रखते हुये
आह भरते हुये और दरख़्तों को मन्नत के धागो से आज़ाद करते हुये हम मिलेंगे
हम मिलेंगे कहीं नारमेंडी के साहिल पे आते हुये अपने गुम गश्तरश्तो की ख़ाक-ए-सफ़र से अटी वर्दियों के निशाँ देख कर
मराकिस से पलटे हुये एक जर्नेल की आख़िरी बात पर मुस्कुराते हुये
इक जहाँ जंग की चोट खाते हुये हम मिलेंगे
हम मिलेंगे कहीं रूस की दास्ताओं की झूठी कहानी पे आँखो मे हैरत सजाये हुये, शाम लेबनान बेरूत की नरगिसी चश्मूरों की आमद के नोहू पे हँसते हुये, ख़ूनी कज़ियो से मफ़लूह जलबानियाँ के पहाड़ी इलाक़ों मे मेहमान बन कर मिलेंगे
हम मिलेंगे एक मुर्दा ज़माने की ख़ुश रंग तहज़ीब मे ज़स्ब होने के इमकान में
इक पुरानी इमारत के पहलू मे उजड़े हुये लाँन में
और अपने असीरों की राह देखते पाँच सदियों से वीरान ज़िंदान मे
हम मिलेंगे तमन्नाओं की छतरियों के तले, ख़्वाहिशों की हवाओं के बेबाक बोसो से छलनी बदन सौंपने के लिये रास्तों को
हम मिलेंगे ज़मीं से नमूदार होते हुये आठवें बर्रे आज़म में उड़ते हुये कालीन पर
हम मिलेंगे किसी बार में अपनी बकाया बची उम्र की पायमाली के जाम हाथ मे लेंगे और एक ही घूंट में हम ये सैयाल अंदर उतारेंगे
और होश आने तलक गीत गायेंगे बचपन के क़िस्से सुनाता हुआ गीत जो आज भी हमको अज़बर है बेड़ी बे बेड़ी तू ठिलदी तपईये पते पार क्या है पते पार क्या है?
हम मिलेंगे बाग़ में, गाँव में, धूप में, छाँव में, रेत मे, दश्त में, शहर में, मस्जिदों में, कलीसो में, मंदिर मे, मेहराब में, चर्च में, मूसलाधार बारिश में, बाज़ार में, ख़्वाब में, आग में, गहरे पानी में, गलियों में, जंगल में और आसमानों में
कोनो मकाँ से परे गैर आबद सैयाराए आरज़ू में सदियों से खाली पड़ी बेंच पर
जहाँ मौत भी हम से दस्तो गरेबाँ होगी, तो बस एक दो दिन की मेहमान होगी

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गले मिलना ना मिलना तो तेरी मर्ज़ी है लेकिन

गले मिलना ना मिलना तो तेरी मर्ज़ी है लेकिन
तेरे चेहरे से लगता है तेरा दिल कर रहा है

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tehzeeb hafi shayari