वर्तमान दौर में पता नहीं क्यों, हम सब गंभीर होते जा रहे हैं। जिसे भय व आशंका ने कभी स्पर्श न किया हो, वह अचानक क्यों काया पर अवसाद लपेट लेता है? एकांत व एकाकी जीवन का ब्लोटिंग पेपर संपर्क और पारस्परिकता के अभाव में भीतर की चिकनाई सोख रहा है। समय से पहले ही पसर रहा है बुढ़ापा।
Loneliness, relationship, introvert
वर्तमान दौर में पता नहीं क्यों, हम सब गंभीर होते जा रहे हैं। जिसे भय व आशंका ने कभी स्पर्श न किया हो, वह अचानक क्यों काया पर अवसाद लपेट लेता है? एकांत व एकाकी जीवन का ब्लोटिंग पेपर संपर्क और पारस्परिकता के अभाव में भीतर की चिकनाई सोख रहा है। समय से पहले ही पसर रहा है बुढ़ापा।
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