पूछते रहते हैं मुझसे लोग अकसर यह सवाल-अदम गोंडवी
“कैसा है कहिए न सरजू पार की कृष्ना का हाल”
उनकी उत्सुकता को शहरी नग्नता के ज्वार को
सड़ रहे जनतंत्र के मक्कार पैरोकार को
धर्म संस्कृति और नैतिकता के ठेकेदार को
प्रांत के मंत्रीगणों को केंद्र की सरकार को
मैं निमंत्रण दे रहा हूँ आएँ मेरे गाँव में
तट पे नदियों के घनी अमराइयों की छाँव में
गाँव जिसमें आज पांचाली उघाड़ी जा रही
या अहिंसा की जहाँ पर नथ उतारी जा रही
हैं तरसते कितने ही मंगल लंगोटी के लिए
बेचती है जिस्म कितनी कृष्ना रोटी के लिए !
- भुखमरी की ज़द में है या दार के साये में है-अदम गोंडवी
- आँख पर पट्टी रहे और अक़्ल पर ताला रहे-अदम गोंडवी
- जो ‘डलहौजी’ न कर पाया वो ये हुक्काम कर देंगे-अदम गोंडवी
- ये अमीरों से हमारी फ़ैसलाकुन जंग थी-अदम गोंडवी
- धधकता गंगाजल है- अटल बिहारी वाजपेयी
- न्यूयॉर्क- अटल बिहारी वाजपेयी
- पद ने जकड़ा- अटल बिहारी वाजपेयी
- बेचैनी की रात- अटल बिहारी वाजपेयी
- मंत्रिपद तभी सफल है- अटल बिहारी वाजपेयी
- कार्ड महिमा- अटल बिहारी वाजपेयी
- घर में दासी- अटल बिहारी वाजपेयी
- गूंजी हिन्दी विश्व में- अटल बिहारी वाजपेयी
- सूखती रजनीगन्धा- अटल बिहारी वाजपेयी
- नहीं पुलिस का पीछा छूटा- अटल बिहारी वाजपेयी