जिसके चरण-चरण (बुद्ध मुझे, अंधकार से निकालें)- अजय शोभने
जिसके चरण-चरण हों, करुणा से गर्वित,
मुझको बस ऐसा, सम्यक सम्बुद्ध चाहिए !
छला गया हूँ, अंधश्रद्धा-अंधविश्वासों से,
बस अब तो सत्य-मार्ग का ज्ञाता चाहिए !
शील, समाधी, प्रज्ञा, से भवन हो निर्मित,
मुझको अपना वो, स्वर्णिम तीर्थ चाहिए !
जिसके चरण-चरण हों, करुणा से गर्वित,
मुझको बस ऐसा, सम्यक सम्बुद्ध चाहिए !
भेद-भाव ने किया है कलुषित मेरे चित्त को,
समता स्थापित करने वाला, वो धम्म चाहिए !
अहिंसा सदाचरण विद्या हो आभूषण जिसके,
मुझको बस ऐसा अपना आराध्यदेव चाहिए !
जिसके चरण-चरण हों, करुणा से गर्वित,
मुझको बस ऐसा, सम्यक सम्बुद्ध चाहिए !
नहीं मिला कभी किसी को सुख शान्ति पथ,
अस्त्र-सस्त्र, धनुष-वाण और बम-बारूदों से !
फूल खिले हैं हरदम करुणा मैत्री भाईचारे से,
बैर अबैर से मिटा सके, ऐसा वो देव चाहिए !
जिसके चरण-चरण हों, करुणा से गर्वित,
मुझको बस ऐसा, सम्यक सम्बुद्ध चाहिए !
- भूख के एहसास को शेरो-सुख़न तक ले चलो-अदम गोंडवी
- किसको उम्मीद थी जब रौशनी जवां होगी -अदम गोंडवी
- घर में ठण्डे चूल्हे पर अगर ख़ाली पतीली है -अदम गोंडवी
- जिस तरफ डालो नजर सैलाब का संत्रास है -अदम गोंडवी
- विकट बाढ़ की करुण कहानी नदियों का संन्यास लिखा है -अदम गोंडवी
- कविता हिंदी में लिखी हुई
- एशियाई हुस्न की तस्वीर है मेरी ग़ज़ल -अदम गोंडवी
- भुखमरी, बेरोज़गारी, तस्करी के एहतिमाम- अदम गोंडवी
- महज़ तनख़्वाह से निपटेंगे क्या नखरे लुगाइ के- अदम गोंडवी