होरी-शाह शरफ़ -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Shah Sharaf
होरी आई फाग सुहाई बिरहुं फिरै निसंगु ।
उड रे कागा देसु सुदच्छन कबि घरि आवै कंत ।१।
होरी को खेलै को खेलै जां के पिया चले परदेसु ।१।रहाउ।
होरी खेलनि तिन कउ भावै जिन के पिया गल बाहिं ।
हउ बउरी होरी कै संगि खेलऊं हम घरि साजन नाहिं ।२।
अन जानत पिया गवन कियो री मैं भूली फिरउ निहोरी ।
नैन तुम्हारे रिदे चुभे रहे मैं तनि नाहिं सतिओ री।३।
जान बूझ पिया मगनि भए हैं बिरहु करी बिधंसु ।
शाह शरफ़ पिया बेग मिलउ होरी खेलऊं मैं अनन्द बसंतु ।४।
(राग किदारा)