हरि प्रभ का सभु खेतु है-श्लोक -गुरू राम दास जी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Guru Ram Das Ji

हरि प्रभ का सभु खेतु है-श्लोक -गुरू राम दास जी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Guru Ram Das Ji

हरि प्रभ का सभु खेतु है हरि आपि किरसाणी लाइआ ॥
गुरमुखि बखसि जमाईअनु मनमुखी मूलु गवाइआ ॥
सभु को बीजे आपणे भले नो हरि भावै सो खेतु जमाइआ ॥
गुरसिखी हरि अम्रितु बीजिआ हरि अम्रित नामु फलु अम्रितु पाइआ ॥
जमु चूहा किरस नित कुरकदा हरि करतै मारि कढाइआ ॥
किरसाणी जमी भाउ करि हरि बोहल बखस जमाइआ ॥
तिन का काड़ा अंदेसा सभु लाहिओनु जिनी सतिगुरु पुरखु धिआइआ ॥
जन नानक नामु अराधिआ आपि तरिआ सभु जगतु तराइआ ॥1॥304॥