हमारी चिंता न करना-गुरभजन गिल-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gurbhajan Gill
बहुत मुश्किल है
उस पीड़ा को अनुवादित करना
जो उस आह में छुपी है
जो उस रेहड़ी वाले ने भरी है।
कि! सरकार जी,
स्कूल खोल दो,
हमारे घर आटा न दाल
अजब तरह कांपती है
पैरों तले जमीन जैसे भूचाल
कुछ तो करो ख्याल।
स्कूल आटा न बेचे न बाँटे
फिर इस रेहड़ी वाले को
स्कूल खुलने की चिंता क्यों है?
आप नहीं समझ सकोगे
स्कूल के बाहरी तरफ
छोले-भटूरे, आलू-टिक्की, गुड़-चावल के लड्डू और
मीठी नमकीन सेवईयां बेचते
इस लड़के की आँख अंदर की पीड़ा।
आधी छुट्टी के वक़्त यह सब बेचकर
स्कूली बच्चों के सहारे
उसके घर का चूल्हा जलता है।
माँ की आँखों के लिए दवा दरमल।
सरकार जी
विनती स्वीकार करें
इससे पहले कि कोरोना डसे
भूख डस रही है।
छोटे भाई के लिए
पैबंद लगे जूते लेने हैं
गर्मियाँ सिर पर हैं
बारिश-बरसात से बचने को
झुग्गी पर डालने के लिए तिरपाल लेनी है।
मेरी बहन दुप्पटा माँगती है।
बड़ी हो गई है न!
शर्म के मारे बाहर नहीं निकलती
लोग बात करते हैं।
खाली टीन पूछता है
हमारा पेट कब भरेगा?
मेरी तो खैर कृपा है!
मैं तो कुछ दिन चने चबा
पानी पीकर भी गुजार लूँगा।
सरकार जी
सुनिए! आपने वो टीका तो बना लिया
जो कोरोना मुक्त करता है
अब वो थर्मामीटर भी बनाओ
जो जान सके कि
दर्द की तपिश कहाँ तक पहुँची
ताकि आपको पता लगे
कि हमारे मन में क्या चलता है?
स्कूल बंद करने वाले
हुक्म करते समय सोचा करो
बच्चे कक्षाएं चढ़ने नहीं
पढ़ने आते हैं
अगली कक्षा में मुँह-जुबानी चढ़ा
आप कागजों का पेट तो भर सकते हो!
हमारा हरगिज़ नहीं सरकारो।
शब्द हार गए तो
आपकी कागजी लंका
पलों में ढह जाएगी।
हुज़ूर!
हमें कोरोना खाए न खाए
पर भूख जरूर खा जाएगी।
झुग्गियों जैसे
कमजोर घरों में पहले ही सिर्फ
मुसीबतें मेहमानों सी आती हैं
बल्कि पक्का डेरा जमाती हैं।
हमारी आवाज सुनो
आपके पास तो रेडियो है, टीवी है
अखबार है, दरबार है,
जिसको जब चाहे, जहां चाहे
मन की बात सुना सकते हो।
हम किस से कहें!
सिर्फ दिहाड़ी नहीं,
दिल टूट रहा है जनाब!
हमारी चिंता न करना,
स्कूल खोल दो
हम खुद कमा के खा लेंगे।