सौ दूरियों पे भी भी मिरे दिल से जुदा न थी-दर्द आशोब -अहमद फ़राज़-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Ahmed Faraz,
सौ दूरियों प’ भी मेरे दिल से जुदा न थी
तू मेरी ज़िंदगी थी मगर बेवफ़ा न थी
दिल ने ज़रा से ग़म को क़यामत बना दिया
वर्ना वो आँख इतनी ज़्यादा ख़फ़ा न थी
यूँ दिल लरज़ उठा है किसी को पुकार कर
मेरी सदा भी जैसे कि मेरी सदा न थी
बर्गे-ख़िज़ाँ जो शाख़ से टूटा वो ख़ाक़ था
इस जाँ सुपुर्दगी के तो क़ाबिल हवा न थी
जुगनू की रौशनी से भी क्या भड़क उठी
इस शहर की फ़ज़ा कि चराग़ आश्ना न थी
मरहूने आसमाँ जो रहे उनको देख कर
ख़ुश हूँ कि मेरे होंठों प’ कोई दुआ न थी
हर जिस्म दाग़-दाग़ था लेकिन ‘फ़राज़’ हम
बदनाम यूँ हुए कि बदन पर क़बा न थी