सुंञी देह डरावणी जा जीउ विचहु जाइ-शब्द -गुरु नानक देव जी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Guru Nanak Dev Ji

सुंञी देह डरावणी जा जीउ विचहु जाइ-शब्द -गुरु नानक देव जी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Guru Nanak Dev Ji

सुंञी देह डरावणी जा जीउ विचहु जाइ ॥
भाहि बलंदी विझवी धूउ न निकसिओ काइ ॥
पंचे रुंने दुखि भरे बिनसे दूजै भाइ ॥१॥
मूड़े रामु जपहु गुण सारि ॥
हउमै ममता मोहणी सभ मुठी अहंकारि ॥१॥ रहाउ ॥
जिनी नामु विसारिआ दूजी कारै लगि ॥
दुबिधा लागे पचि मुए अंतरि त्रिसना अगि ॥
गुरि राखे से उबरे होरि मुठी धंधै ठगि ॥२॥
मुई परीति पिआरु गइआ मुआ वैरु विरोधु ॥
धंधा थका हउ मुई ममता माइआ क्रोधु ॥
करमि मिलै सचु पाईऐ गुरमुखि सदा निरोधु ॥३॥
सची कारै सचु मिलै गुरमति पलै पाइ ॥
सो नरु जमै ना मरै ना आवै ना जाइ ॥
नानक दरि परधानु सो दरगहि पैधा जाइ ॥४॥१४॥(19)॥