सहनशीलता।-राही चल : अनिल मिश्र प्रहरी (Anil Mishra Prahari)| Hindi Poem | Hindi Kavita,
सहनशीलता ने पथ देकर
मंजिल तक पहुँचा डाला,
टूट गयी जंजीर वक्त की
टूट गया विष का प्याला।
इसने हमें सिखाया सहना
जग का भी वो तीव्र दशन,
पथ के अंगारों पर चलना
और झेलना उग्र तपन।
जहाँ कहीं मन आहत होकर
पीड़ा से भरपूर हुआ,
जहाँ कहीं भर नीर नयन से
गिरने को मजबूर हुआ।
सहनशीलता को अपना, कीलों
की सह ली तीक्ष्ण चुभन,
सहा जगत् का क्रूर वार
भी जीवन की सारी उलझन।
पथ की ज्वाला दे न सकी
वह ताप जहाँ नर जल जाता,
बन न सकी वह आग जहाँ
पर लौह पिघल कर ढल जाता।
चलो राह पर धीरज धरके
राह कठिन, भी अनजानी,
दुर्जन होंगे पथ पर अगणित
पग- पग उनकी मनमानी।
सहनशक्ति वह तेज जहाँ
अति घोर अनय भी झुकता है,
आकर जिसके दर पर निश्चित
क्रूर – कदम भी रुकता है।
पर झुकना हो भीत कुटिल से
कायरता स्वीकार नहीं,
सहनशक्ति अपनाने का उस
मानव को अधिकार नहीं।
सहते जाना अघ दुष्टों का
वीरों का आधार कहाँ,
धधक सके न पवन संग जो
पानी है अंगार कहाँ।
सह लेना आतंक किसी का
भी न न्याय की परिभाषा,
जीने और जिलाने की हो
सबके मन में अभिलाषा।