सलोक -गुरू अंगद देव जी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Guru Angad Dev Ji
होइ इआणा करे कमु आणि न सकै रासि
होइ इआणा करे कमु आणि न सकै रासि ॥
जे इक अध चंगी करे दूजी भी वेरासि ॥5॥474॥
नकि नथ खसम हथ किरतु धके दे
नकि नथ खसम हथ किरतु धके दे ॥
जहा दाणे तहां खाणे नानका सचु हे ॥2॥653॥
राति कारणि धनु संचीऐ भलके चलणु होइ
राति कारणि धनु संचीऐ भलके चलणु होइ ॥
नानक नालि न चलई फिरि पछुतावा होइ ॥2॥787॥
नानक तिना बसंतु है जिन्ह घरि वसिआ कंतु
नानक तिना बसंतु है जिन्ह घरि वसिआ कंतु ॥
जिन के कंत दिसापुरी से अहिनिसि फिरहि जलंत ॥2॥791॥
एह किनेही चाकरी जितु भउ खसम न जाइ
एह किनेही चाकरी जितु भउ खसम न जाइ ॥
नानक सेवकु काढीऐ जि सेती खसम समाइ ॥2॥475॥
मनहठि तरफ न जिपई जे बहुता घाले
मनहठि तरफ न जिपई जे बहुता घाले ॥
तरफ जिणै सत भाउ दे जन नानक सबदु वीचारे ॥4॥787॥
किस ही कोई कोइ मंञु निमाणी इकु तू
किस ही कोई कोइ मंञु निमाणी इकु तू ॥
किउ न मरीजै रोइ जा लगु चिति न आवही ॥1॥791॥
जपु तपु सभु किछु मंनिऐ अवरि कारा सभि बादि
जपु तपु सभु किछु मंनिऐ अवरि कारा सभि बादि ॥
नानक मंनिआ मंनीऐ बुझीऐ गुर परसादि ॥2॥954॥
आपि उपाए नानका आपे रखै वेक
आपि उपाए नानका आपे रखै वेक ॥
मंदा किस नो आखीऐ जां सभना साहिबु एकु ॥
सभना साहिबु एकु है वेखै धंधै लाइ ॥
किसै थोड़ा किसै अगला खाली कोई नाहि ॥
आवहि नंगे जाहि नंगे विचे करहि विथार ॥
नानक हुकमु न जाणीऐ अगै काई कार ॥1॥1238॥
जिन वडिआई तेरे नाम की ते रते मन माहि
जिन वडिआई तेरे नाम की ते रते मन माहि ॥
नानक अम्रितु एकु है दूजा अम्रितु नाहि ॥
नानक अम्रितु मनै माहि पाईऐ गुर परसादि ॥
तिन्ही पीता रंग सिउ जिन्ह कउ लिखिआ आदि ॥1॥1238॥
तिसु सिउ कैसा बोलणा जि आपे जाणै जाणु
तिसु सिउ कैसा बोलणा जि आपे जाणै जाणु ॥
चीरी जा की ना फिरै साहिबु सो परवाणु ॥
चीरी जिस की चलणा मीर मलक सलार ॥
जो तिसु भावै नानका साई भली कार ॥
जिन्हा चीरी चलणा हथि तिन्हा किछु नाहि ॥
साहिब का फुरमाणु होइ उठी करलै पाहि ॥
जेहा चीरी लिखिआ तेहा हुकमु कमाहि ॥
घले आवहि नानका सदे उठी जाहि ॥1॥1239॥
जैसा करै कहावै तैसा ऐसी बनी जरूरति
जैसा करै कहावै तैसा ऐसी बनी जरूरति ॥
होवहि लिंङ झिंङ नह होवहि ऐसी कहीऐ सूरति ॥
जो ओसु इछे सो फलु पाए तां नानक कहीऐ मूरति ॥2॥1245॥
सावणु आइआ हे सखी कंतै चिति करेहु
सावणु आइआ हे सखी कंतै चिति करेहु ॥
नानक झूरि मरहि दोहागणी जिन्ह अवरी लागा नेहु ॥1॥1280॥
नाउ फकीरै पातिसाहु मूरख पंडितु नाउ
नाउ फकीरै पातिसाहु मूरख पंडितु नाउ ॥
अंधे का नाउ पारखू एवै करे गुआउ ॥
इलति का नाउ चउधरी कूड़ी पूरे थाउ ॥
नानक गुरमुखि जाणीऐ कलि का एहु निआउ ॥1॥1288॥
सो किउ अंधा आखीऐ जि हुकमहु अंधा होइ
सो किउ अंधा आखीऐ जि हुकमहु अंधा होइ ॥
नानक हुकमु न बुझई अंधा कहीऐ सोइ ॥3॥954॥
अंधे कै राहि दसिऐ अंधा होइ सु जाइ
अंधे कै राहि दसिऐ अंधा होइ सु जाइ ॥
होइ सुजाखा नानका सो किउ उझड़ि पाइ ॥
अंधे एहि न आखीअनि जिन मुखि लोइण नाहि ॥
अंधे सेई नानका खसमहु घुथे जाहि ॥1॥954॥
आपे जाणै करे आपि आपे आणै रासि
आपे जाणै करे आपि आपे आणै रासि ॥
तिसै अगै नानका खलिइ कीचै अरदासि ॥1॥1093॥