सबदि मरै तिसु सदा अनंद-शब्द-गुरू अमर दास जी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Guru Amar Das Ji
सबदि मरै तिसु सदा अनंद ॥
सतिगुर भेटे गुर गोबिंद ॥
ना फिरि मरै न आवै जाइ ॥
पूरे गुर ते साचि समाइ ॥१॥
जिन्ह कउ नामु लिखिआ धुरि लेखु ॥
ते अनदिनु नामु सदा धिआवहि गुर पूरे ते भगति विसेखु ॥१॥ रहाउ ॥
जिन्ह कउ हरि प्रभु लए मिलाइ ॥
तिन्ह की गहण गति कही न जाइ ॥
पूरै सतिगुर दिती वडिआई ॥
ऊतम पदवी हरि नामि समाई ॥२॥
जो किछु करे सु आपे आपि ॥
एक घड़ी महि थापि उथापि ॥
कहि कहि कहणा आखि सुणाए ॥
जे सउ घाले थाइ न पाए ॥३॥
जिन्ह कै पोतै पुंनु तिन्हा गुरू मिलाए ॥
सचु बाणी गुरु सबदु सुणाए ॥
जहां सबदु वसै तहां दुखु जाए ॥
गिआनि रतनि साचै सहजि समाए ॥४॥
नावै जेवडु होरु धनु नाही कोइ ॥
जिस नो बखसे साचा सोइ ॥
पूरै सबदि मंनि वसाए ॥
नानक नामि रते सुखु पाए ॥੫॥੧੧॥੫੦॥੩੬੪॥
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