सतिगुर की सेवा निरमली-श्लोक -गुरू राम दास जी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Guru Ram Das Ji

सतिगुर की सेवा निरमली-श्लोक -गुरू राम दास जी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Guru Ram Das Ji

सतिगुर की सेवा निरमली निरमल जनु होइ सु सेवा घाले ॥
जिन अंदरि कपटु विकारु झूठु ओइ आपे सचै वखि कढे जजमाले ॥
सचिआर सिख बहि सतिगुर पासि घालनि कूड़िआर न लभनी कितै थाइ भाले ॥
जिना सतिगुर का आखिआ सुखावै नाही तिना मुह भलेरे फिरहि दयि गाले ॥
जिन अंदरि प्रीति नही हरि केरी से किचरकु वेराईअनि मनमुख बेताले ॥
सतिगुर नो मिलै सु आपणा मनु थाइ रखै ओहु आपि वरतै आपणी वथु नाले ॥
जन नानक इकना गुरु मेलि सुखु देवै इकि आपे वखि कढै ठगवाले ॥1॥305॥