सतरंगिनी -हरिवंशराय बच्चन -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita By Harivansh Rai Bachchan Part 5

सतरंगिनी -हरिवंशराय बच्चन -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita By Harivansh Rai Bachchan Part 5

पाँचवां रंग-सातवां रंग

मुझे पुकार लो

इसीलिए खड़ा रहा
कि तुम मुझे पुकार लो!

ज़मीन है न बोलती,
न आसमान बोलता,
जहान देखकर मुझे
नहीं ज़बान खोलता,
नहीं जगह कहीं जहाँ
न अजनबी गिना गया,
कहाँ-कहाँ न फिर चुका
दिमाग-दिल टटोलता;
कहाँ मनुष्‍य है कि जो
उमीद छोड़कर जिया,
इसीलिए अड़ा रहा
कि तुम मुझे पुकार लो;
इसीलिए खड़ा रहा
कि तुम मुझे पुकार लो;

तिमिर-समुद्र कर सकी
न पार नेत्र की तरी,
वि‍नष्‍ट स्‍वप्‍न से लदी,
विषाद याद से भरी,
न कूल भूमि का मिला,
न कोर भेर की मिली,
न कट सकी, न घट सकी
विरह-घिरी विभावरी;
कहाँ मनुष्‍य है जिसे
कमी खली न प्‍यार की,
इसीलिए खड़ा रहा
कि तुम मुझे दुलार लो!
इसीलिए खड़ा रहा
कि तुम मुझे पुकार लो!

उजाड़ से लगा चुका
उमीद मैं बाहर की,
निदाघ से उमीद की,
वसंत से बयार की,
मरुस्‍थली मरीचिका
सुधामयी मुझे लगी,
अँगार से लगा चुका
उमीद मैं तुषार की;
कहाँ मनुष्‍य है जिसे
न भूल शूल-सी गड़ी,
इसीलिए खड़ा रहा
कि भूल तुम सुधार लो!

इसीलिए खड़ा रहा
कि तुम मुझे पुकार लो!
पुकार कर दुलार लो,
दुलार कर सुधार लो!

कौन तुम हो?

ले प्रलय की नींद सोया
जिन दृगों में था अँधेरा,
आज उनमें ज्‍योति बनकर
ला रही हो तुम सवेरा,
सृष्टि की पहली उषा की
यदि नहीं मुसकान तुम हो,
कौन तुम हो?

आज परिचय की मधुर
मुसकान दुनिया दे रही है,
आज सौ-सौ बात के
संकेत मुझसे ले रही है
विश्‍व से मेरी अकेली
यदि नहीं पहचान तुम हो,
कौन तुम हो?

हाय किसकी थी कि मिट्टी
मैं मिला संसार मेरा,
हास किसका है कि फूलों-
सा खिला संसार मेरा,
नाश को देती चुनौती
यदी नहीं निर्माण तुम हो,
कौन तुम हो?

मैं पुरानी यादगारों
से विदा भी ले न पाया
था कि तुमने ला नए ही
लोक में मुझको बसाया,
यदि नहीं तूफ़ान तुम हो,
जो नहीं उठकर ठहरता
कौन तुम हो?

तुम किसी बुझती चिता की
जो लुकाठी खींच लाती
हो, उसी से ब्‍याह-मंडप
के तले दीपक जलाती,
मृत्‍यु पर फिर-फिर विजय की
यदि नहीं दृढ़ आन तुम हो,
कौन तुम हो?

यह इशारे हैं कि जिन पर
काल ने भी चाल छोड़ी,
लौट मैं आया अगर तो
कौन-सी सौगंध तोड़ी,
सुन जिसे रुकना असंभव
यदि नहीं आह्वान तुम हो,
कौन तुम हो?

कर परिश्रम कौन तुमको
आज तक अपना सका है,
खोजकर कोई तुम्‍हारा
कब पता भी पा सका है,
देवताओं का अनिश्चित
यदि नहीं वरदान तुम हो,
कौन तुम हो?

 तुम गा दो

तुम गा दो, मेरा गान अमर हो जाए!
मेरे वर्ण-वर्ण विश्रृंखल,
चरण-चरण भरमाए,
गूँज-गूँजकर मिटने वाले
मैंने गीत बनाए;
कूक हो गई हूक गगन की
कोकिल के कंठों पर,
तुम गा दो, मेरा गान अमर हो जाए!

जब-जब जग ने कर फैलाए,
मैंने कोष लुटाया,
रंक हुआ मैं निज निधि खोकर
जगती ने क्‍या पाया!
भेंट न जिसमें मैं कुछ खोऊँ
पर तुम सब कुछ पाओ,
तुम ले लो, मेरा दान अमर हो जाए!
तुम गा दो, मेरा गान अमर हो जाए!

सुंदर और असुंदर जग में
मैंने क्‍या न सराहा,
इतनी ममतामय दुनिया में
मैं केवल अनचाहा;
देखूँ अब किसकी रुकती है
आ मुझपर अभिलाषा,
तुम रख लो, मेरा मान अमर हो जाए!
तुम गा दो, मेरा गान अमर हो जाए!

दुख से जिवन बीता फिर भी
शेष अभी कुछ रहता,
जीवन की अंतिम घड़ियों में
भी तुमसे यह कहता,
सुख की एक साँस पर होता
है अमरत्‍व निछावर,
तुम छू दो, मेरा प्राण अमर हो जाए!
तुम गा दो, मेरा गान अमर हो जाए!

नया वर्ष

वर्ष नव,
हर्ष नव,
जीवन उत्कर्ष नव।

नव उमंग,
नव तरंग,
जीवन का नव प्रसंग।

नवल चाह,
नवल राह,
जीवन का नव प्रवाह।

गीत नवल,
प्रीत नवल,
जीवन की रीति नवल,
जीवन की नीति नवल,
जीवन की जीत नवल!

नव दर्शन

दर्श नवल,
स्पर्श नवल,
जीवन- आकर्ष नवल,
जीवन- आदर्श नवल,
वर्ण नवल
वेश नवल,
जीवन उन्मेष नवल
जीवन-सन्देश नवल ।
प्राण नवल,
हृदय नवल,
जीवन की प्रणति नवल,
जीवन में प्रणय नवल ।

एक दाह

दाह एक
आह एक
जीवन की त्राहि एक ।
प्यास एक,
त्रास एक,
जीवन इतिहास एक ।
आग एक,
राग एक,
जीवन का भाग एक ।
तीर एक,
पीर एक,
नयनों में नीर एक,
जीवन-ज़ंजीर एक ।

 एक स्नेह

एक पलक
एक झलक,
दो मन में एक ललक ।
एक पास,
एक पहर,
दो मन में एक लहर ।
एक रात,
एक साथ,
दो मन में एक बात ।
एक गेह,
एक देह,
दो मन में एक स्नेह ।

नवल प्रात

नवल हास,
नवल बास,
जीवन की नवल साँस ।
नवल अंग,
नवल रंग,
जीवन का नवल संग ।
नवल साज,
नवल सेज,
जीवन में नवल तेज ।
नवल नींद,
नवल प्रात,
जीवन का नव प्रभात,
कमल नवल किरण-स्नात ।

प्रेम

भूल नहीं,
शूल नहीं,
चिन्ता की मूल नहीं।
चाल नहीं,
जाल नहीं,
दुर्दिन की माल नहीं ।
पाप नहीं,
शाप नहीं,
संकट-संताप नहीं ।
प्रेम अजर, प्रेम अमर
जो कुछ भी सुंदरतर
जगती में, जीवन में
लाता है मंथन कर,
मंथन से सिहर-सिहर
उठते हैं नारी-नर !

काल

कल्प-कल्पान्तर मदांध समान,
काल, तुम चलते रहे अनजान,
आ गया जो भी तुम्हारे पास,
कर दिया तुमने उसे बस नाश ।

मिटा क्या-क्या छू तुम्हारा हाथ,
यह किसी को भी नहीं है ज्ञात,
किन्तु अब तो मानवों की आँख
सजग प्रतिपल, घड़ी, वासर, पाख,

उल्लिखित प्रति पग तुम्हारी चाल,
उल्लिखित हर एक पल का हाल,
अब नहीं तुम प्रलय के जड़ दास,
अब तुम्हारा नाम है इतिहास !

ध्वंस की अब हो न शक्ति प्रचण्ड,
सभ्यता के वृद्धि-मापक दण्ड !
नाश के अब हो न गर्त महान,
प्रगतिमय संसार के सोपान !

तुम नहीं करते कभी कुछ नष्ट
जन्मती जिससे नहीं नव सृष्टि,
किन्तु यदि करते कभी बर्बाद
कुछ कि जो सुन्दर, सुमधुर, अनूप,

मानवों की चमत्कारी याद
है बनाती एक उसका रूप
और सुन्दर और मधुमय, पूत,
जानता है जो भविष्य न भूत,
सब समय रह वर्तमान समान
विश्व का करता सतत कल्याण !

 कर्तव्‍य

देवि, गया है जोड़ा यह जो
मेरा और तुम्‍हारा नाता,
नहीं तुम्‍हारा मेरा केवल,
जग-जीवन से मेल कराता।

दुनिया अपनी, जीवन अपना,
सत्‍य, नहीं केवल मन-सपना;
मन-सपने-सा इसे बनाने
का, आओ, हम तुम प्रण ठानें।

जैसी हमने पाई दुनिया,
आओ, उससे बेहतर छोड़ें,
शुचि-सुंदरतर इसे बनाने
से मुँह अपना कभी न मोड़ें।

क्‍योंकि नहीं बस इससे नाता
जब तक जीवन-काल हमारा,
खेल, कूद, पढ़, बढ़ इसमें ही
रहने को है लाल हमारा।

विश्‍वास

पंथ जीवन का चुनौती
दे रहा है हर कदम पर,
आखिरी मंजिल नहीं होती
कहीं भी दृष्टिगोचर,

धूलि में लद, स्‍वेद में सिंच
हो गई है देह भारी,
कौन-सा विश्‍वास मुझको
खींचता जाता निरंतर?-

पंथ क्‍या, पंथ की थकान क्‍या,
स्‍वेद कण क्‍या,
दो नयन मेरी प्रतीक्षा में खड़े हैं।

एक भी संदेश आशा
का नहीं देते सितारे,
प्रकृति ने मंगल शकुन पथ
में नहीं मेरे सँवारे,

विश्‍व का उत्‍साहव र्धक
शब्‍द भी मैंने सुना कब,
किंतु बढ़ता जा रहा हूँ
लक्ष्‍य पर किसके सहारे?-

विश्‍व की अवहेलना क्‍या,
अपशकुन क्‍या,
दो नयन मेरी प्रतीक्षा में खड़े हैं।

चल रहा है पर पहुँचना
लक्ष्‍य पर इसका अनिश्चित,
कर्म कर भी कर्म फल से
यदि रहा यह पांथ वंचित,

विश्‍व तो उस पर हँसेगा
खूब भूला, खूब भटका!
किंतु गा यह पंक्तियाँ दो
वह करेगा धैर्य संचित-

व्‍यर्थ जीवन, व्‍यर्थ जीवन की
लगन क्‍या,
दो नयन मेरी प्रतीक्षा में खड़े हैं!

अब नहीं उस पार का भी
भय मुझे कुछ भी सताता,
उस तरफ़ के लोक से भी
जुड़ चुका है एक नाता,

मैं उसे भूला नहीं तो
वह नहीं भूली मुझे भी,
मृत्‍यु-पथ पर भी बढ़ूँगा
मोद से यह गुनगुनाता-

अंत यौवन, अंत जीवन का,
मरण क्‍या,
दो नयन मेरी प्रतीक्षा में खड़े हैं!