संगमरमर का संगीत -रंग जमा लो -अशोक चक्रधर-Hindi -हिंदी Ashok Chakradhar,

संगमरमर का संगीत -रंग जमा लो -अशोक चक्रधर-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Ashok Chakradhar,

(नाट्य कविता)

पात्र- स्वर-1, स्वर-2, गायक, महिला, गाइड, अनुकूल ध्वनि एवं संगीत
स्वर- (1) यमुना की सांवली लहरें
वृन्दावन निधिवन के
कुंज लता गुंजों को पार कर
जब बढ़ती हैं, आगे
रास रचाती हुई
बाँसुरी गुंजाती हुई
गायों-सी रंभाती हुई
और आगे
तो यकायक ठिठक जाते हैं
लहरों के पांव
बढ़ते हैं संभल- संभल।
(पानी में ताजमहल के लहराते बिम्ब।
हालांकि समझ में नहीं आ रहा कि ताजमहल ही है।)
किसने खिलाए ये सफ़ेद कमल?
किसने बिखराया है
धारा पर पारा
इतना सारा!
(पानी में ताजमहल का स्पष्ट बिम्ब, फिर स्थित ताज।)
स्वर- (2) तुम तो अपने दामन में
प्यार को समेट कर लाई हो लहरो।
समा लो अपने अंदर मेरा भी अक्स।
मैं भी तो वहीं हूँ
मुजस्सम प्यार
तुम्हारी धार का कगार।
(ताज की दीवारों के दृश्य)
स्वर-(1) बाँसुरी की गूंज में
घुल जाते हैं
प्यार के सितार के स्वर
और बजने लगते हैं
दिल के दमामे।
(गुम्बद का आंतरिक स्वरूप)
नाद गूँज उठता है
आकाश तक।
(क़ब्रों के विविध कोण)
गायक- (मसनवी शैली में गायन)
यादगारे उल्फ़ते शाहे जहां
रोज़- ए- मुमताज़ फ़िरदौस आशियाँ
फ़न्ने तामीरान की तकमील ताज
दर्दो- अहसासात की तश्कील ताज।
(ताज के बाहर सड़क पर विदेशी महिला और भारतीय गाइड)
गाइड- ऐक्सक्यूज़ मी मैडम!
नीड अ गाइड?
महिला- नो, थैंक्स।
(सीढ़ियों से चढ़कर ताज का चबूतरा)
गाइड- हां तो हज़रात!
ताज की कहानी इतनी लम्बी है
सुनाना शुरू करूं
तो हो जाएगी रात
लेकिन दास्तान ख़तम नहीं होगी।
पांच सदियों पुरानी ये कहानी,
हुज़ूर आगे आ जाइए,
आज भी ज़िंदा है।
ज़माना गौर से सुन रहा है
पर जी नहीं भरता है।
(ताजमहल के विभिन्न शॉट्स, कमैण्ट्री के अनुसार)
ख़ुदा मालूम
इसके मरमरी ज़िस्म में
क्या- क्या है
पर इतना कहूँगा
कि चित्रकार की नज़र है
शायर का दिल है
बहारों का नग़मा है।
ताज क्या है
क़ुदरत की हथेली में
खिला हुआ इक फूल है वक़्त के रुख़सार पर
ठहरा हुआ आंसू है हुज़ूर
हुस्नो-जमाल का जलवा है
इतना ख़ूबसूरत इतना नाज़ुक
इतना मुक़म्मल
इतना पाकीज़ा है हुज़ूर
कि बाज़-वक़्त डर लगता
छूने में
कि मैला न हो जाए।
दर्शक- गाइड हैं कि शायर हैं?
गाइड- हुज़ूर आप कुछ भी कहें
शायरी तो इनसानी हाथों ने की है
इसे बनाकर
जनाबेआली।
गोया बनाने वालों ने
संगमरमर में इक हसीन
ख़्वाब लिख डाला है।
(ताजमहल के विभिन्न शॉट्स, कथ्य से मेल खाते हुए।)
तामीर का यानी निर्माण का
काम शुरू हुआ
सोलह सौ बत्तीस में
और सजावट को
आख़िरी चमक दी गई
सोलह सौ तिरपन में
इस तरह कुल जमा
बाईस साल लगे
और चौबीस हज़ार लोगों के
अड़तालीस हज़ार हाथ
इसे बनाते रहे।
शुरू के पांच साल तो लग गए
ज़मीन को यक़सार करने में
टीलों को काटने में
गड्ढों को भरने में।
फिर सिलसिला शुरू हुआ
सामान के आमद का
ऊँटों का, हाथियों का
घोड़ों का, ख़च्चरों का।
मुसल्सल सिलसिला हुज़ूर!
तराई के पेड़ों से
संदल, आबनूस, देवदार
शीशम और साल लाया गया
चारकोह मकराना से
सफ़ेद संगमरमर मंगवाया गया।
उदयपुर से काला पत्थर
बड़ौदा से बुंदकीदार-खुरदरा
कांगड़ा से सुरमई
आंध्रा के कड़प्पा से चितकबरा
बग़दाद से अक़ीक़
तब्दकमाल से फ़ीरोज़ा
दरिया- ए- शोर से मूँगा
लंका से लाजोर्द
यमन से लालयमनी
दरिया-ए-नील से लहसीना,
और न जाने कहाँ-कहाँ से,
पतूनिया, तवाई, मूसा, मीना।
अजूबा, नख़ूद, रखाम, गोरी
पंखनी, गोडा, याक़ूत, बिल्लौरी।
खट्टू, नीलम, जमर्रुद, गार
हीरा, संख, मरवारीद, जदबार।
पुखराज है, बादल है, गोडा है
इतने पत्थर हैं कि
गिनती भी थक जाए
गिनाते-गिनाते,
ज़माना गुज़र जाए बताते-बताते।
(फ़व्वारों के पास पार्क)
और देखिए
यहीं कहीं
बताशे और बारीक़ रेत के
टीले लगे होंगे
ईंटों की भट्टियाँ खुदी होंगी
मसाले के लिए
गुड़ की भेलियां, उड़द की दाल
और पटसन से
मैदान अट गया होगा जनाब।
अब तो यहाँ
नज़र के लिए नज़ारे हैं
नहर है, फ़व्वारे हैं।
लेकिन सोचिए
वो भी क्या नज़ारा होगा।
(एरियल शॉट्स ताज और पास की बस्ती
सूर्यास्त और धुएं की पृष्ठभूमि में ताज के शॉट्स।)
जब सूरज के आने और जाने की
परवाह किए बिना
मेमारों, संगतराशों, फ़नकारों ने
इसे बनवाया होगा।
इधर ढेर सारा धुआँ निकलता होगा
भट्टियों की चिमनियों से।
उधर ताजगंज की
मज़दूर झोंपड़ियों के
हज़ारों चूल्हों से
थोड़ा- सा धुआं उठता होगा।
इधर ईंटें, उधर रोटियों पकती होंगी
इधर कीलें तो उधर
ज़िंदगी ठुकती होंगी।