श्लोक -गुरू राम दास जी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Guru Ram Das Ji 2
सतिगुरु पुरखु दइआलु है
सतिगुरु पुरखु दइआलु है जिस नो समतु सभु कोइ ॥
एक द्रिसटि करि देखदा मन भावनी ते सिधि होइ ॥
सतिगुर विचि अम्रितु है हरि उतमु हरि पदु सोइ ॥
नानक किरपा ते हरि धिआईऐ गुरमुखि पावै कोइ ॥1॥300॥
हउमै माइआ सभ बिखु है
हउमै माइआ सभ बिखु है नित जगि तोटा संसारि ॥
लाहा हरि धनु खटिआ गुरमुखि सबदु वीचारि ॥
हउमै मैलु बिखु उतरै हरि अम्रितु हरि उर धारि ॥
सभि कारज तिन के सिधि हहि जिन गुरमुखि किरपा धारि ॥
नानक जो धुरि मिले से मिलि रहे हरि मेले सिरजणहारि ॥2॥300॥
विणु नावै होरु सलाहणा
विणु नावै होरु सलाहणा सभु बोलणु फिका सादु ॥
मनमुख अहंकारु सलाहदे हउमै ममता वादु ॥
जिन सालाहनि से मरहि खपि जावै सभु अपवादु ॥
जन नानक गुरमुखि उबरे जपि हरि हरि परमानादु ॥1॥301॥
सतिगुर हरि प्रभु दसि
सतिगुर हरि प्रभु दसि नामु धिआई मनि हरी ॥
नानक नामु पवितु हरि मुखि बोली सभि दुख परहरी ॥2॥301॥