-श्लोक -गुरू राम दास जी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Guru Ram Das Ji 3
मन अंतरि हउमै रोगु है
मन अंतरि हउमै रोगु है भ्रमि भूले मनमुख दुरजना ॥
नानक रोगु गवाइ मिलि सतिगुर साधू सजना ॥1॥301॥
मनु तनु रता रंग सिउ
मनु तनु रता रंग सिउ गुरमुखि हरि गुणतासु ॥
जन नानक हरि सरणागती हरि मेले गुर साबासि ॥2॥301॥
मै मनि तनि प्रेमु पिरम का
मै मनि तनि प्रेमु पिरम का अठे पहर लगंनि ॥
जन नानक किरपा धारि प्रभ सतिगुर सुखि वसंनि ॥1॥301॥
जिन अंदरि प्रीति पिरम की
जिन अंदरि प्रीति पिरम की जिउ बोलनि तिवै सोहंनि ॥
नानक हरि आपे जाणदा जिनि लाई प्रीति पिरंनि ॥2॥301॥
सुणि साजन प्रेम संदेसरा
सुणि साजन प्रेम संदेसरा अखी तार लगंनि ॥
गुरि तुठै सजणु मेलिआ जन नानक सुखि सवंनि ॥1॥302॥