शॉल बचाइए -इसलिए बौड़म जी इसलिए-अशोक चक्रधर-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Ashok Chakradhar,
देश को छोड़िए शॉल बचाइए!
(दूसरों के दाग़ दिखाने के चक्कर में हम कई बार ख़ुद को जला बैठते हैं।)
श्रीमान जी आप खाना कैसे खाते हैं!
बच्चों की तरह गिराते हैं!!
कुर्ते पर गिराया है सरसों का साग,
पायजामे पर लगे हैं सोंठ के दाग।
ये भी कोई सलीक़ा है!
आपने कुछ भी नहीं सीखा है!!
जाइए कपड़े बदलिए
और इन्हें भिगोकर आइए,
या फिर भाभी जी का
काम हल्का करिए
अभी धोकर आइए!
श्रीमान जी बोले—
आपको क्या, कोई भी धो ले।
पर आप मेरे निजी मामलों में
बहुत दखल देते हैं,
बिना मांगे की अकल देते हैं।
अभी किसी ने
जलती हुई सिगरेट फेंकी,
मैंने अपनी आंखों से देखी।
पिछले तीन मिनिट से
सुलग रहा है आपका शॉल
पर क्या मजाल
जो मैंने टोका हो
आपकी किसी प्रक्रिया को रोका हो!
देश के मामले में भी मेरे भाई!
यही है सचाई!
या तो हम बुरी तरह खाने में लगे हैं,
या फिर दूसरों के दाग़
दिखाने में लगे हैं।
इस बात का किसी को
पता ही नहीं चल रहा है
कि देश धीरे-धीरे जल रहा है।
श्रीमान जी बोले— इस तरह आकाश में
उंगलियां मत नचाइए,
देश को छोडि़ए शॉल बचाइए!
Comments are closed.