शीशा-गुरभजन गिल-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gurbhajan Gill
दिन निकलते ही
लोग अब नहीं पूछते
अपने दुख-सुख का इलाज
अपना मुंह धोने से पहले
पूछते हैं
कश्मीर का क्या हुआ?
भूल गए हैं सब
हमारा तुम्हारा क्या हुआ?
सट्टेबाज से
दिहाड़ीदार तक
व्यस्त हैं सभी
मंडियों के भाव जानने में।
रसूल हमजातोव ने
सही कहा था
बच्चे की सुन्नत के लिए
बत्तख़ का पंख बहुत जरूरी है।
पर आप
बत्तख़ के पंख से
सुन्नत नहीं कर सकते।
उसके लिए चाहिए उस्तरा।
किसी ने पूछा
फिर बत्तख़ का पंख
किस काम आएगा?
उसने कहा
बच्चे का ध्यान बंटाने के लिए।
पर दोस्तों
इसे कविता न समझना
ये शीशा है
जिसमे मुझे आपको हम सब को
देखना बनता है जनाब।