विरक्ति-शैलेन्द्र चौहान -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Shailendra Chauhan

विरक्ति-शैलेन्द्र चौहान -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Shailendra Chauhan

 

कदापि उचित नहीं
दिगंत के उच्छिष्ट पर
फैलाना पर
शमन कर भावनाओं का
मनुष्य मन पर
प्राप्त कर विजय
उड़ भी तो नहीं सकते
अबाबीलों के झुंड में
ठहरी हुई हवा
बेपनाह ताप
बहुत सुंदर हैं
नीम की हरी-हरी
पत्तों भरी ये टहनियाँ
अर्थ क्या है
पत्तों वाली टहनियों का
न हिलें यदि
उमस भरी शाम
विरक्त मन,
फैल गई है विरक्ति
बुगनवेलिया के गुलाबी फूल
करते नहीं आनंदित
यद्यपि खूबसूरत हैं वे |

 

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