विदिआ वीचारी तां परउपकारी-शब्द -गुरु नानक देव जी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Guru Nanak Dev Ji
विदिआ वीचारी तां परउपकारी ॥
जां पंच रासी तां तीरथ वासी ॥१॥
घुंघरू वाजै जे मनु लागै ॥
तउ जमु कहा करे मो सिउ आगै ॥१॥ रहाउ ॥
आस निरासी तउ संनिआसी ॥
जां जतु जोगी तां काइआ भोगी ॥२॥
दइआ दिग्मबरु देह बीचारी ॥
आपि मरै अवरा नह मारी ॥३॥
एकु तू होरि वेस बहुतेरे ॥
नानकु जाणै चोज न तेरे ॥४॥२५॥(356)॥
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