वानर बैठा है कुर्सी पर, हुई बिल्लियाँ मौन-रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’ -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Roopchandra Shastri Mayank 

वानर बैठा है कुर्सी पर, हुई बिल्लियाँ मौन-रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’ -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Roopchandra Shastri Mayank

वानर बैठा है कुर्सी पर,
हुई बिल्लियाँ मौन!
अन्धा है कानून हमारा,
न्याय करेगा कौन?

लुटी लाज है मिटी शर्म है,
अनाचार में लिप्त कर्म है,
बन्दीघर में बन्द धर्म है,
रिश्वत का बाजार गर्म है,
हुई योग्यता गौण!
अन्धा है कानून हमारा,
न्याय करेगा कौन?

घोटालों में भी घोटाले,
गोरों से बढ़कर हैं काले,
अंग्रेज़ी को मस्त निवाले,
हिन्दी को खाने के लाले,
मैकाले हैं द्रोण!
अन्धा है कानून हमारा,
न्याय करेगा कौन?

संसद में ज़्यादातर गुण्डे,
मन्दिर लूट रहे मुस्टण्डे,
जात-धर्म के बढ़े वितण्डे,
वार बन गये सण्डे-मण्डे,
पनप रहे हैं डॉन!
अन्धा है कानून हमारा,
न्याय करेगा कौन?