वाइनि चेले नचनि गुर-सलोक-गुरु नानक देव जी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Guru Nanak Dev Ji
वाइनि चेले नचनि गुर ॥
पैर हलाइनि फेरन्हि सिर ॥
उडि उडि रावा झाटै पाइ ॥
वेखै लोकु हसै घरि जाइ ॥
रोटीआ कारणि पूरहि ताल ॥
आपु पछाड़हि धरती नालि ॥
गावनि गोपीआ गावनि कान्ह ॥
गावनि सीता राजे राम ॥
निरभउ निरंकारु सचु नामु ॥
जा का कीआ सगल जहानु ॥
सेवक सेवहि करमि चड़ाउ ॥
भिंनी रैणि जिन्हा मनि चाउ ॥
सिखी सिखिआ गुर वीचारि ॥
नदरी करमि लघाए पारि ॥
कोलू चरखा चकी चकु ॥
थल वारोले बहुतु अनंतु ॥
लाटू माधाणीआ अनगाह ॥
पंखी भउदीआ लैनि न साह ॥
सूऐ चाड़ि भवाईअहि जंत ॥
नानक भउदिआ गणत न अंत ॥
बंधन बंधि भवाए सोइ ॥
पइऐ किरति नचै सभु कोइ ॥
नचि नचि हसहि चलहि से रोइ ॥
उडि न जाही सिध न होहि ॥
नचणु कुदणु मन का चाउ ॥
नानक जिन्ह मनि भउ तिन्हा मनि भाउ ॥२॥(465)॥