लापता बंदर -इसलिए बौड़म जी इसलिए-अशोक चक्रधर-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Ashok Chakradhar,
चिड़ियाघर का चौकीदार जागा,
तो पाया कि अंदर से
एक बंदर निकल भागा।
बंदर था नायाब,
और कीमती बेहिसाब,
इसलिए रिपोर्ट लिखवाई गई पुलिस में,
पुलिस ने भी
काफी दिलचस्पी ली इसमें।
बहुत दिनों चला
खोज का सिलसिला
पर बंदर नहीं मिला, नहीं मिला, नहीं मिला।
फिर एक
अंतरराष्ट्रीय बंदर अन्वेषण आयोग बिठाया गया,
दुनिया भर के पुलिस विशेषज्ञों को बुलाया गया।
अन्य बंदरों से भी पूछा
उनके साथियों से पूछा
तलाश में लग गया
तंत्र समूचा।
आधुनिकतम विधियों से
वैज्ञानिक प्रविधियों से
जमकर खोज हुई,
चौबीसों घंटे हर रोज हुई
पर बंदर फरार का फरार,
विदेशी विशेषज्ञों ने मान ली हार।
दिखा दी लाचारी,
तब इनाम रखा गया भारी।
इंस्पेक्टर बौड़मसिंह आए आगे,
उन्होंने बंदर बरामद करने के लिए
सिर्फ तीन घंटे माँगे।
थानेदार को सैल्यूट मारा,
और कर गए किनारा।
दो घंटे बाद देखा गया कि
इंस्पेक्टर बौड़मसिंह
थाने में एक गधे को
रस्सी पकड़कर
इधर से उधर घसीट रहे थे,
डंडे से लगातार पीट रहे थे।
ऐसा मारा बेभाव,
कि गधे के शरीर पर घाव ही घाव।
थानेदार ने बुलाया और कर दी खिंचाई-
तुम्हें बंदर ढूँढने भेजा था
और तुम कर रहे हो गधे की धुनाई !
ये कैसा क्रिया-कलाप है,
जानते नहीं हो
निरीह जीवों को सताना पाप है ?
इंस्पेक्टर बौड़म बिलकुल नहीं घबराए,
पसीना पोंछ कर मुस्कराए –
हुजूर,
मैं पुलिस का पुराना धुरंधर हूँ,
सिर्फ आधा घंटे की मोहलत दीजिए
ये गधा अपने मुँह से बोलेगा-बक्कारेगा कि
जी हाँ, मैं ही बंदर हूँ।