मैं डर गया हूँ-शंकर कंगाल नहीं-शंकर लाल द्विवेदी -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Shankar Lal Dwivedi 

मैं डर गया हूँ-शंकर कंगाल नहीं-शंकर लाल द्विवेदी -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Shankar Lal Dwivedi

 

स्वप्न नहीं, सत्य।
मुझे निश्चित पता है मित्र!
धूप जैसे गुण वाली, चाँदनी से लिपा-पुता-
भीमकाय नील-नभ,
नयनों से बहे नीर वाले क्षुब्ध सिन्धु में-
कल जो समा गया।
बस, बस, तभी से सिर
चकरा रहा है, मैं-
डर गया हूँ, सचमुच,
बहुत, बहुत डर गया हूँ।
आज के इन्सान से;
इन्सान के ईमान से।।
-१३ नवम्बर, १९६६५

 

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