मेरे लाखों गुनाहों की क्या है मजाल-गुरसिमरन सिंह-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gursimran Singh

मेरे लाखों गुनाहों की क्या है मजाल-गुरसिमरन सिंह-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gursimran Singh

मेरे लाखों गुनाहों की क्या है मजाल
तेरी रहमत के आगे हर एक फीका है।
“असल में सीखा तो कुछ भी नहीं हमने”
बस पैगाम यही तेरे फरिश्तों से सीखा है
कर आईने पे ऐतबार ये गुज़ारिश करूँ
तौबा करने का गुर तू सिखा दे मुझे ।
सुना है तुझको पाने का यही तरीका है।