मेरे गुरुवर-विकास कुमार गिरि -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Vikas Kumar Giri 

मेरे गुरुवर-विकास कुमार गिरि -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Vikas Kumar Giri

दुनिया में होते हैं ये सबसे महान
जिसका करते हैं सभी गुणगान
“गुरु विश्वामित्र, वशिष्ठ, अत्रि”
जिसको पूजते स्वयं भगवान

जैसे सूरज आकर करता है अंधकार को दूर
उसी तरह ये भी हर किसी की जिंदगी में आकर
ज्ञान के प्रकाश को फैलाते भरपूर

इनमें कोई नहीं होती है लालसा
ये बस इतना चाहें कि मेरा शिष्य हो सबसे अच्छा
अधर्म, अनीति गलत कर्मो से रहे हमेशा दूर
जीवन के पथ पर कभी न हो मेरा शिष्य मजबूर

इनकी एक ही इच्छा शिष्य मेरा पढ़-लिख कर बने महान
देश-विदेश में मेरे द्वारा दिए गए फैलाये वो ज्ञान
ऐसे गुरु को शत शत प्रणाम

Comments are closed.